शनिवार, 27 जनवरी 2018

= ८१ =


🌷🙏#daduji🙏🌷
🌷🙏卐 सत्यराम सा 卐🙏🌷
*औघट दरिया क्यों तिरे, बोहिथ बैसणहार ।*
*दादू खेवट राम बिन, कौण उतारे पार ॥* 
==========================
साभार ~ स्वामी सौमित्राचार्य

“प्रपत्ति” ~ ‘नमामि भक्तमाल को’
भगवद्भक्त नारियाँ ~ **श्री खीचनी जी**
खीचनी जी एक रानी थीं और इनकी संतों के चरणों में अद्भुत प्रीति थी. एक बार इनको पता चला कि अमुक गाँव में कुछ साधू-संत पधारे हैं तो इन्होंने बहुत से पकवानों के साथ एक दासी को संतों के पास भेज दिया. वह दासी बड़ी ही सुन्दर, चतुर और राजा को प्रिय थी. रानी ने उसके साथ एक लड़के को भी भेजा था.
.
जब दासी संतों को पकवान और भेंट देकर लौट रही थी तभी कुछ लुटेरों ने लड़के को मारकर भगा दिया और दासी को उठा ले गए. जब यह बात राजा को पता चली तो वह रानी पर बहुत गुस्सा हुआ. गुस्से में उसने साधू-संतों को बहुत बुरा-भला कहा. राजा यहाँ तक बोल गया कि इस घटना में किसी साधू का ही हाथ है. रानी संतों के अपमान से बहुत दुखी हुईं. वो ठाकुर जी से प्रार्थना करने लगीं कि संतों की प्रतिष्ठा पर कोई आँच नहीं आये और राजा के मन में संतों के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो जाए.
.
अपनी भक्त रानी की करुण पुकार सुनकर भक्तवत्सल प्रभु ने दासी को राजमहल में लाकर खड़ा कर दिया. दासी ने राजा को बताया कि उसे नहीं पता कि वह वन से यहाँ कैसे आ गयी. रानी खीचनी के आनन्द का तो ठिकाना नहीं रहा और राजा के मन में भी संत-भगवंत के प्रति श्रद्धा हो गयी.
.
कभी-कभी ऐसा प्रसंग भक्तों के जीवन में उपस्थित हो जाता है जब भगवत-सेवा या संत-सेवा करते समय कोई काम बिगड़ जाता है. तब वो लोग जो पहले से ही भक्ति के पक्ष में नहीं थे भक्त को बुरा-भला कहने लगते हैं. भक्त को कहें तो कहें पर जब वो उसके इष्ट या गुरु के खिलाफ बोलने लगते हैं तब भक्त को बहुत कष्ट होता है. वास्तव में सेवा से तो कुछ बिगड़ता नहीं है और भक्त इसलिए सेवा करता भी नहीं है कि संसार बने. सेवा करी भी नहीं जाती है, वह तो प्रेम में अपने आप बनती है. तो ऐसी स्थिति में भक्त को अपने भगवान पर पूरा भरोसा रखते हुए उनसे प्रार्थना करनी चाहिए. प्रभु अपने भक्त के कष्ट को तुरंत हर लेते हैं.
“स्वामी सौमित्राचार्य”

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें