卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*विचार का अँग १८*
.
दादू एक विचार सौं, सब तैं न्यारा होइ ।
माँहीं है पर मन नहीं, सहज निरंजन सोइ ॥१०॥
साधक वैराग्य - पूर्वक एक विचार - बल द्वारा सब सँसार से अलग हो जाता है । यद्यपि शरीर सँसार में ही रहता है किन्तु मन सँसार में न रह कर निरन्तर राम के चिन्तन में ही रहता है और अनायास ही निरंजन ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है ।
.
दादू गुण निर्गुण मन मिल रह्या, क्यों बेगर१ ह्वै जाहि ।
जहं मन नाहीं सो नहीं, जहं मन चेतन सो आहि ॥११॥
दैवीगुणों से रहित मूर्ख - मन विषयों में मिल रहा है, वह कैसे विरक्त१ होकर परमात्मा की ओर जाय ? उत्तर - जिस वस्तु में मन नहीं होता, वह वस्तु उस के लिये नहीं के समान ही होती है और जिसमें मन सावधानी से लगा रहता है, वह उसके सामने रहती है । अत: वैराग्य - पूर्वक विचार द्वारा मन को परमात्मा में लगाने से वह विषयों से अलग होकर परमात्मा की ओर जाता है ।
.
*विचार*
दादू सब ही व्याधि की, औषधि एक विचार ।
समझे तैं सुख पाइये, कोई कुछ कहो गंवार ॥१२॥
१२ - १५ में विचार की विशेषता कह रहे हैं - जन्म के पश्चात् ही सर्व व्याधियां होती हैं । ब्रह्म विचार द्वारा जन्माभाव होने से सर्व व्याधियों की औषधि एक विचार ही है । प्राणी को अपना वास्तविक स्वरूप समझने पर ही परमानन्द प्राप्त होता है, फिर चाहे कोई मूर्ख कुछ भी कहे, दु:ख नहीं होता ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें