#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू सहजैं सुमिरण होत है, रोम रोम रमि राम ।*
*चित्त चहूँट्या चित्त सौं, यों लीजे हरि नाम ॥*
*दादू सुमिरण सहज का, दीन्हा आप अनंत ।*
*अरस परस उस एक सौं, खेलैं सदा बसंत ॥*
=================
**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
.
*अजपा जाप का अंग २२*
इस अंग में अजपा जाप सम्बन्धी विचार कर रहे हैं -
.
शरीर शब्द अरु श्वास करि, हरि समिरन तिहुँ ठाँम ।
जन रज्जब आतम अगम, अजपा इसका नाम ॥१॥
शरीर की प्रत्येक क्रिया द्वारा, नाम रूप शब्द और श्वास द्वारा एक साथ निरंतर स्मरण होता रहता है, तब इसी का नाम अजपा जाप हो जाता है, इस अजपा जाप से आत्मा ब्रह्म स्वरूप ही हो जाता है ।
.
मुख सौ भजै सु मानवी, दिल सौं भजै देव ।
जीव सौं जपै सु ज्योति में, रज्जब साँची सेव ॥२॥
जो मुख से भजन करता है, वह मानव है, दिल से भजन करता है, वह देवता है ओर जो जीव से अर्थात आत्मा को ब्रह्म रूप समझकर भजता है, वह ब्रह्म ज्योती में लीन हो जाता है, यही सच्ची उपासना है ।
.
रज्जब मुख अक्षर मुख सप्त स्वर, मुख भाषा छत्तीस ।
एतौं ऊपर उर भजन, अन अक्षर जगदीश ॥३॥
जोधपुर राज्य के पांचेटिया गांव के चारण दुरशा आडा, यह भावना लिये धूम रहे थे कि चर्चा में मुझे कोई जीत लेगा तो मै उसका शिष्य बन जाऊँगा और मैं जीत लूंगा तो हारने वाले व्यक्ति को मेरी पालकी में जोतकर चलाऊँगा । वह धूमता हुआ साँगानेर रज्जबजी के पास पहुँचा और बोला -
"बावन अक्षर सप्त स्वर, मुख भाषा छतीस ।
इतने ऊपर जो कथे, तो जानूं कवि ईश ॥
इसी के उत्तर में यह ऊक्त साखी कही थी । साखी का अर्थ - बावन अक्षर, सप्त स्वर और छतीस भाषा, इनका तो मुख से व्यवहार होता है, किन्तु हृदय में ब्रह्म को भजन किया जाता है वह अक्षर, सप्त स्वर और सभी भाषाओं से परे है । यह सुनकर दुरशा आडा ने नत मस्तक होकर रज्जब जी को अपना गुरु मान लिया तथा अपनी पालकी आदि सभी रज्जबजी के चरणों में भेट कर दी ।
.
नेह निनामे१ सौं किया, ध्यान धर्या बिन अंक२ ।
रज्जब मनहुँ जहाज बिन, हनुमत पहुँच्या लंक ॥४॥
नामरहित१ ब्रह्म से प्रेम किया और चिन्ह२ रहित ब्रह्म का ध्यान किया, उक्त प्रकार साधन से परब्रह्म के पास ऐसे पहुँचे, जैसे हनुमान जी बिना ही जहाज के लंका में पहुंचे थे ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें