गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

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🌷🙏#daduji🙏🌷
🌷🙏卐 सत्यराम सा 卐🙏🌷
*नाहीं ह्वै करि नाम ले, कुछ न कहाई रे ।*
*साहिब जी की सेज पर, दादू जाई रे ॥* 
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com 
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संपूर्ण मनुष्य जाति शून्य की तरह घूमते हुए लोगोँ की भीड़ है। जिन्हें लगता है कि मेरे पास सब कुछ है.... उनके भीतर तो कुछ भी नहीँ है, लेकिन उन्हों ने बाहर कुछ इकट्ठा कर रखा है। उसी के बलबूते पर वे कुछ बने हुए हैँ। किन्हीँ के पास धन है, किन्हीँ के पास पद है, किन्हीँ के पास ज्ञान है, किन्हीँ के पास त्याग है, किन्हीँ के पास कुछ और है; उसी के बलबूते पर वे बने हैँ कि हम कुछ हैँ, मै कुछ हूं। भीतर एक रिक्तता खड़ी हुई है और बाहर मनुष्य समृद्धि को इकट्ठा किये हुए है। भीतर की रिक्तता को दबाए और छिपाए हुए है। लेकिन मृत्यु रिक्तता को उघाड़ देगी और मृत्यु के क्षण पता चलेगा कि पास में कुछ भी नहीँ है। तब बोध होगा कि एक प्रवंचना मे स्वयं को नष्ट कर लिया है। तब ज्ञात होगा कि एक भ्रम, एक व्यर्थ स्वप्न में स्वयं को नष्ट कर लिया है। पास तो कुछ भी नहीँ है।
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मृत्यु जिस रिक्तता को उघाड़ेगी.... जो मनुष्य मृत्यु के पहले उस रिक्तता को देख लेता है, वह जीवन को उपलब्ध हो जाता है। जो मृत्यु उघाड़ेगी, उसे स्वयं उघाड़ लेना साधना है। जिसे मृत्यु एक क्षण में छीन लेगी, उसे स्वयं छोड़ देना साधना है। उसे खोज लेना जिसे मृत्यु भी न छीन सके। जिसे मृत्यु न छीन सके, उसे फिर कौन छीन सकेगा? मृत्यु अंतिम और सबसे समर्थ छिनने वाला है। स्वयं अपनी रिक्तता को उघाड़ लेना और जान लेना कि मैं कौन और क्या हूं; जो मेरे पास है, उस सबको अपना समझ लेने के भ्रम को नष्ट कर देता है।
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जो मनुष्य है, वही मनुष्य का है। जो उसके पास था, वह उसका नहीँ। वह किसी का भी नहीँ है। मनुष्य जब न था, तब भी वो था, मनुष्य जब न रहेगा, तब भी वह रहेगा। इस मैं को जानना होगा जो अकेला साथी है मनुष्य का - जीवन में, मृत्यु में, जन्म में, सुख में और दुख में। जो प्रत्येक परिवर्तन में साथ है और अपरिवर्तित है। इसको न जानने वाला भ्रांति में है। इसे जान लेने वाला आनंद और ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है।
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मनुष्य के चारोँ तरफ जो है वही सब-कुछ नहीँ है। भीतर भी कुछ है, उसे जान लेना ही धर्म है। इस धर्म के अभाव में मनुष्य के पास सब है, केवल स्वयं को छोड़ कर, इस धर्म के अभाव में मनुष्य सब जान लेता है, केवल स्वयं को छोड़ कर, इस धर्म के अभाव में मनुष्य सब इकट्ठा कर लेता है, केवल स्वयं को छोड़ कर। और इस सबका का क्या मूल्य जिस सौदे में स्वयं को खो देना पड़े? सब छोड़ कर यदि स्व मिल जाए तो भी सौदा सस्ता है।

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