गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

= हरिबोल चितावनी(ग्रन्थ २९-२१/२२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*हरिबोल चितावनी(ग्रन्थ २९)*
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*सेज सुखासन बैठते,*
*चलते चढि चौडोल३ ।* 
*सूते जाइ मसान मैं,*
*(सु) हरि बोलौ हरि बोल ॥२१॥* 
(३. चौडोल = अमीरों के बैठने की एक प्रकार की पालकी ।) 
जो जीवन भर अच्छी से अच्छी सेज पर सोते थे, पालकी में ही बैठकर चलते थे(पैदल चलना अपना अपमान समझते थे) उन्हें भी एक दिन अकेले लकड़ियों पर श्मशान में जाकर सोना पड़ता है । अतः(हे जिज्ञासु ! तूँ शरीर की वासना छोड़कर) निरन्तर हरिस्मरण कर ॥२१॥
*देह गली ४ संग काठ कै,*
*ह्वै गई होहो होल ।* 
*खुर न खोज कहुं पाइये,*
*(सु) हरि बोलौ हरि बोल ॥२२॥* 
(४. गली = जल गई । होहो = हाहाकार । होल = घबराहट, भयंकरता ।) यह शरीर तो अन्त में नौ मन लकड़ी से जल जाता है, दो क्षण के लिये लोग दिखावटी शोक मना लेते हैं, फिर इसका कोई चिन्ह नहीं दिखायी देता है अतः तूँ(इसका ममत्व छोड़कर) निरन्तर हरिस्मरण कर ॥२२॥ 
(क्रमशः)

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