🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
.
*हरिबोल चितावनी(ग्रन्थ २९)*
.
*हिरदै भीतर पैठि करि,*
*अंतः करण बिरोल१ ।*
*को तेरौ तूं कौन कौ,*
*(सु) हरि बोलौ हरि बोल ॥२७॥*
(१. बिरोलना = छांटना, विवेक करना । अथवा अन्तःकरणरूपी धन को खूब बिलस ।)
अब तूं अपने ह्रदय में प्रविष्ट होकर(ध्यान लगा कर) अन्तःकरण से सत् असत् का चिन्तन कर, मन्थन कर कि इस संसार में कौन तेरा है या तूं किसका है ! एक हरि के सिवाय तेरा कोई नहीं अतः तूं उसी का निरन्तर स्मरण करने में अपना चित्त लगा ॥२७॥
.
*तेरौ२ तेरे पास है,*
*अपनैं माँहि टटोल३ ।*
*राई घटै न तिल बढ़ै,*
*(सु) हरि बोलौ हरि बोल ॥२८॥*
(२. तेरौ = तेरी आत्मा वा ब्रह्म ।) (३. टटोल -(अज्ञानी की तरह) ढूँढ ।)
वस्तुतः तेरा कहे जाने वाला(आत्मा पाया ब्रह्म) तेरे ही से हैं, अपने ह्रदय में तूं उसके दर्शन(साक्षात्कार) कर । यह बात इतनी सत्य है कि इसकी सत्यता में राई जितनी कमी नहीं आ सकती, न तिल जितनी सी भी वृद्धि हो सकती है, अतः तूं निरन्तर हरिस्मरण में अपना चित्त लगा ॥२८॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें