रविवार, 4 फ़रवरी 2018

= अजपा जाप का अंग २२(९-१२) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*दादू हरि रस पीवतां, रती विलम्ब न लाइ ।*
*बारम्बार संभालिये, मति वै बीसरि जाइ ॥* 
*दादू जगत सुपना ह्वै गया, चिंतामणि जब जाइ ।*
*तब ही साचा होत है, आदि अंत उर लाइ ॥* 
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*अजपा जाप का अंग २२*
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रज्जब रटतों जीव ही, चित्त चातक सम जाप । 
मक्र वक्र बोले नहीं, आप हरत हरि आप ॥९॥ 
जैसे चातक पक्षी स्वाति बिन्दु के लिये पीव पीव रटता है, वैसे ही जीव निरन्तर अजपा जाप जपता है । मच्छी मुख से तो पानी नहीं पीती किन्तु उसकी प्यास जल रोम रोम द्वारा उसमें प्रवेश कर के बुझाता है, वैसे ही अजपा जाप का साधक मुख से तो नाम नहीं बोलता, फिर भी हरि उसकी अभिलाषा पूर्ण करते रहते हैं । 
रज्जब रसना रहित रस, पीवे प्राण प्रवीन । 
वक्त्र बिना ज्यों वारि सुख, रोम रोम से मीन ॥१०॥ 
जैसे मच्छी मुख बिना ही रोम रोम से जल पान का सुख लेती है, वैसे ही रसना का उच्चारण करे बिना ही चतुर साधक प्राणी अजपा जाप का रस पान करते रहते हैं । 
रज्जब रसना बोल ही, चहुँ इन्द्रिय चुप चाप । 
ये पंचों कारज समर्थ, यूं स अबोल्या जाप ॥११॥ 
जैसे एक रसना द्वारा वाक् इन्द्रिय बोलती है, अन्य श्रोत्र, चक्षु, ध्राण, और त्वचा चुप रहती है फिर भी पांचो अपना अपना कार्य करने में समर्थ हैं ऐसे ही बिना बोले वह अजपा जाप होता है । 
मुख मारुत सेती अगम, सुमिरन सुरति मझार । 
रज्जब करसी एक को, अजपा जप व्यवहार ॥१२॥ 
वृत्ति से होने वाला स्मरण मुख और प्राण वायु की गति से परे है, यही अजपा जाप है किन्तु अजपा जप करने का व्यवहार कोई विरला ही करेगा ।
(क्रमशः)

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