रविवार, 20 मई 2018

= आयुर्बल-भेद आत्मा-बिचार(ग्रन्थ ३६ / ९-१०) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
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*= आयुर्बल-भेद आत्मा-बिचार(ग्रन्थ ३६) =*
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*यौं आयुर्बल घटतौ जाइ ।* 
*काल निरंतर सब कौं खाइ ॥* 
*ब्रह्मा आदि पतंग जहाँ लौं ।* 
*उपजै बिनसै देह तहां लौं ॥९॥*
यौं, क्रमशः प्राणियों का आयुर्बल धीरे-धीरे क्षीण होता जात है । मृत्यु सब को खाती रहती है । ब्रह्मा से लेकर कीट पतंग तक सभी चौरासी लाख योनियों में जन्म-मरण को प्राप्त होते रहते हैं ॥ 
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*= बांस की छाया की उपमा =*
*यथा बांस लघु दीरघ होई ।* 
*तिनकी छाया घटि बधि होइ ॥* 
*जब सूरज आवै मध्यान ।* 
*दोऊ छाया एक समान ॥१०॥* 
(महाकवि आयुर्बल के न्यूनाधिक भाव को बांस की छाया के उदाहरण से समझाना चाहते हैं --) जैसे बांस की छाया सूर्य के कारण छोटी-बड़ी होती रहती है । जब सूर्य मध्यान में ऊपर आता है तब छाया बराबर हो जाती है(बाँस में ही लीन हो जाती है), न छोटी रहती है न बड़ी ।(इसी तरह ब्रह्मज्ञान रूपी मध्यान सूर्य के रहते मायारूपी छाया नष्ट हो जाती है, अपितु यों कहिये, उसी ब्रह्म में विलीन हो जाता है ।) ॥१०॥  
(क्रमशः)
 

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