शनिवार, 19 मई 2018

= आयुर्बल-भेद आत्मा-बिचार(ग्रन्थ ३६ / ७-८) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
.
*= आयुर्बल-भेद आत्मा-बिचार(ग्रन्थ ३६) =*
.
*तीस बीस दश पाँच की एक ।* 
*एक घड़ी मैं गये अनेक ॥* 
*एक घड़ी की साठि निमेष ।* 
*घटत घटत एकै पल शेष ॥७॥*
फिर आगै तीस, बीस, दस, पाँच यहाँ तक कि अन्त में एक घड़ी का ही आयुर्बल रह जायगा । एक घड़ी भी उस समय ज्यादा मानी जायगी । एक घड़ी में भी साठ निमेष(पल) होते हैं । इन निमेषों में आयुर्बल माँपा जायगा । और अन्त में एक पल आयुर्बल रह जायगा ॥७॥
.
*एक पलक षट स्वासा होइ ।* 
*तासौं घटि बधि कहै न कोइ ॥* 
*पंच च्यारि त्रिय द्वै इक स्वास ।* 
*अर्थ पाव अध पाव विनास ॥८॥*  
एक पल छह श्वास का होता है । इससे नीचे(कम) आयुर्बल का न्यूनाधिक भाव क्या कहा जाय ! परन्तु इसमें पाँच, चार, तीन, दो, एक श्वास तक और इससे भी आगे अन्त में आधा और चौथाई श्वास तक आयुर्बल रहता है ॥८॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें