मंगलवार, 15 मई 2018

= शब्द का अँग(२२ - १६/१८) =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*शब्द का अँग २२*
शब्द विचारे, करणी करे, राम नाम निज हिरदै धरे । 
काया माँहीं शोधे सार, दादू कहै, लहै सो पार ॥१६॥ 
जो सद्गुरु - शब्दों को सम्यक् विचार करके, उनके अनुसार साधन करता हुआ राम - नाम को अपने हृदय में धारण करता है तथा आन्तर - वृत्ति द्वारा शरीर के भीतर ही विश्व के सार रूप ब्रह्म की खोज करता है, वह सँसार से पार होकर ब्रह्म को प्राप्त करता है ।
दादू काहे कौड़ी खर्चिये, जे पैके१ सीझे काम । 
शब्दों कारज सिध भया, तो श्रम२ न दीजे राम ॥१७॥ 
(प्राचीन समय में एक पैसा=तीन पाई(सबसे छोटा सिक्का) तथा कौड़ी विनिमय का साधन थी । अत: कौड़ी को वराटक, मनी या जुवेल्स कहते हैं । इसका अर्थ कहीं कम और कहीं अधिक है । "आरमेनियका" नामक एक कौड़ी की कीमत २००० अमरीकी डालर है । - सँ - ) 
"यदि एक पाई१ से ही कार्य सिद्ध होता हो तो सुभलक्षी कीमती कौड़ी क्यों खर्च करते हो ?" सद्गुरु - शब्दों के विचार से ही वैराग्य द्वारा सम्पूर्ण आशाओं की निवृत्ति होकर मुक्ति रूप कार्य सिद्ध होता है, तब सकाम कठौर तपादिक करके अपनी आशा पूर्ति के लिये राम को परिश्रम क्यों देते हो ? "राम - भजन से ही राम मिले" तो कठिन - साधन२ त्यागने में झिझक२ मत करो । 
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दादू राम हृदय रस भेलि कर, को साधू शब्द सुनाइ । 
जानो कर दीपक दिया, भरम तिमिर सब जाइ ॥१८॥ 
कोई विरले सँत ही अपने हृदय का भक्ति - रस शब्दों में मिलाकर साधकों को सुनाते हैं । श्रवण द्वारा वे शब्द साधकों के हृदय में जाते ही, जैसे हाथ में दीपक देने से बाहर का अन्धकार दूर चला जाता है, वैसे ही हृदय का भ्रम रूप अँधकार सब दूर हो जाता है, यह सत्य जानो । 
(क्रमशः)

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