#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू स्वांगी सब संसार है, साधु समन्दां पार ।*
*अनल पंखी कहँ पाइये, पंखी कोटि हजार ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*माया मध्य मुक्ति का अंग ३५*
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एक योग में भोग है, एक भोग में योग ।
इक बूड़हिं वैराग्य में, इक तिरहिं गृही लोग ॥४९॥
एक साधक योग में साधन करता है, किन्तु उसकी वृत्ति भोगार्थ लालायित है, तो वह भोग ही है । एक भोगों में लगा दिखाई देता है, किन्तु उसकी वृत्ति ब्रह्म चिन्तन में है, तो वह योग ही है । एक वैराग्य युक्त संतों ना सा भेष बनाये हुये है किन्तु उसकी वृत्ति में भोग-राग स्थित हैं, तो वह संसार सागर - सागर में ही डुबेगा ही । एक गृहस्थ है किन्तु गृह कार्य करते हुये भी उसकी वृत्ति ब्रह्म चिन्तन में रत्त है तो वह संसार-सागर को तैर कर ब्रह्म को ही प्राप्त होगा ।
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अनल पंखि की आँख अवनि१ पर,
सीप सरोज२ सुरति३ आकाश ।
ऊंचे निचे का भ्रम भागा,
रज्जब शोधत४ आशा आश५ ॥५०॥
अनल पक्षी आकाश में रहता है, किन्तु उसकी दृष्टि पृथ्वी१ पर रहती है, सीप और कमल२ जल में रहते हैं, किन्तु वृत्ति३ आकाश में रहती है, अत: ऊंचे - नीचे रहने में विशेषता - न्यूनता का भ्रम हमारे हृदय से भाग गया है, हम तो यही खोजते४ हैं कि इसकी आशा का आधार५ क्या है ? यदि माया है, तो डूबेगा और ब्रह्म है तो तिरेगा ।
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खग१ खाली दीसै उरे२, रज्जब पृथ्वी पास ।
सप्त सिधुरे३ ले उडै, अनल पंखि आकाश ॥५१॥
यहाँ पृथ्वी के पास रहने वाले पक्षी१ तो खाली उड़ते२ हैं और आकाश में रहने वाला अनल पक्षी पृथ्वी पर से सात हाथी३ लेकर उड़ता है और आकाश में चला जाता है, वैसे ही माला, तिलकादि भेष भूषा द्वारा प्रभु के पास रहने वाले वा मंदिरों में रहने वाले तो वास्तविक भक्ति से रहित हैं और उक्त बाह्य चिन्हों से रहित साधन समाधि के सप्त साधनों को सिद्ध करके निर्विकल्प समाधि रूप आकाश में जाकर ब्रह्म में मिल जाते हैं ।
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सिल१ हु सहित असिल२ हु आगे, पैंतैं३ पहुच्या जाय ।
जन रज्जब है हद४ वही, महँगे मोल बिकाय ॥५२॥
नाज चाहे सिला१ किया हो अर्थात एक एक दाना खेत से चुना हुआ हो वा खलियान२ से काढा हुआ हो आगे दूकान पर तो पवित्र३ होगा वही महँगा बिकेगा कूड़ा कंकर वाला नहीं, वैसे ही साधक चाहे माला तिलकादि भेष-भूषा से युक्त हो वा रहित आगे परमात्मा के पास तो जो पवित्रता की हद्द४ पर पहुंच गया है अर्थात सांसारिक वासना रहित हो गया है वही आदर पायेगा, बाह्य चिह्वों से नहीं ।
(क्रमशः)
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