#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*जीवित मृतक का अँग २३*
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राव रँक सब मरेंगे, जीवे नाँहीं कोइ ।
सोई कहिये जीवता, जे मरजीवा होइ ॥१०॥
राजा, रँक आदि सभी मरेंगे, जीवित कोई भी न रहेगा किन्तु जो सब प्रकार के अभिमान को त्याग कर तथा ब्रह्म का साक्षात्कार करके जीवित है, वही ब्रह्मरूप होने से मर कर भी जीवित कहा जाता है ।
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दादू मेरा वैरी मैं मुवा, मुझे न मारे कोइ ।
मैं ही मुझको मारता, मैं मरजीवा होइ ॥११॥
"मैं" रूप अहँकार ही मुझ को मारता है, मेरा शत्रु "मैं" रूप अहँकार मरा कि फिर कोई नहीं मार सकता । फिर तो मैं सहज ही जीवन्मुक्त हो जाता हूं ।
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वैरी मारे मर गये, चित तैं विसरे नाँहिं ।
दादू अजहूं साल है, समझ देख मन माँहिं ॥१२॥
काम, क्रोधादिक शत्रु साधक द्वारा मारने से मर तो गये हैं किन्तु यदि उनका स्मरण हृदय से नहीं हटा है तो अब भी वे कष्ट दे सकते हैं । यह तुम स्वयँ भी मन में विचार करके देख सकते हो ।
(क्रमशः)
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