बुधवार, 30 मई 2018

= त्रिविध अन्तःकरण भेद(ग्रन्थ ३७ / ९) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
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*=त्रिविध अन्तःकरण भेद(ग्रन्थ ३७)=*
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*= उपसंहार =*
*चतुष्ट२ अंतः करण सुनाये ।*
*त्रिधा भेद सद्गुरु तैं पाये ॥*
*यह नीकैं करी संमुझौ प्रानी ।*
*सुन्दर नौ चौपाई बखानी ॥९॥*
*॥ समाप्तोऽयं त्रिविध अन्तःकरण भेद ग्रन्थ ॥३६॥*
महाकवि सुन्दरदास जी कहते हैं - इस तरह उपनिषद् आदि शास्त्रों में वर्णित अन्तःकरणचतुष्टय का वर्णन कर दिया गया । प्रत्येक के ‘वाह्य’ ‘अन्तः’ एवं ‘परम’ भेद से तीन-तीन भेद बता दिये गये । जिज्ञासु को ये भेद इन नौ चौपाइयों के सहारे भली भांति हृदयंगम कर लेने चाहिये ॥९॥
(२.चतुष्ट =चतुष्टय, चार)
*॥ त्रिविध अन्तःकरणभेद ग्रंथ समाप्त ॥*
(क्रमशः)

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