#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*जीवित मृतक का अँग २३*
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*उभय असमाव*
दादू तो तूँ पावे पीव को, जे जीवित मृतक होइ ।
आप गंवाये पीव मिले, जानत हैं सब कोइ ॥१३॥
१३ - १७ में कहते हैं, जीवत्व अहँकार और ब्रह्म - साक्षात्कार एक काल में एक हृदय में नहीं रहते । हे साधक ! यदि तू जीवितावस्था में ही शव के समान निर्द्वन्द्व हो जाय तभी ब्रह्म को प्राप्त कर सकता है । "मैं - तू" आदि जीवत्व भाव व रूप अहँकार नष्ट करने से ही ब्रह्म प्राप्त होता है । यह बात शास्त्र सँतों द्वारा सभी कोई जानते हैं ।
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दादू तो तूँ पावे पीव को, आपा कछू न जान ।
आपा जिस तैं ऊपजे, सोई सहज पिछान ॥१४॥
अहँकार को कुछ भी न जानकर अर्थात् मिथ्या समझ कर, जिस चेतन आत्मा की सत्ता से अहँकार उत्पन्न होता है, उस सहज स्वरूप साक्षी आत्मा को पहचान लेगा, तो तू परब्रह्म को प्राप्त कर सकेगा ।
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दादू तो तूँ पावे पीव को, मैं मेरा सब खोइ ।
मैं मेरा सहजैं गया, तब निर्मल दर्शन होइ ॥१५॥
यदि तू "मैं और मेरा" रूप अहँकार नष्ट कर देगा तो परब्रह्म को प्राप्त कर सकेगा । आत्मज्ञान द्वारा "मैं - मेरा" रूप अहँकार नष्ट हो जाता है, तब अनायास ही अविद्या - मल रहित परब्रह्म का साक्षात्कार होता है ।
(क्रमशः)
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