卐 सत्यराम सा 卐
*दादू दह दिश दीपक तेज के, बिन बाती बिन तेल ।*
*चहुँ दिसि सूरज देखिये, दादू अद्भुत खेल ॥*
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जैसे ही भीतर के ज्ञान की किरण जगती है, दीपक प्रज्ज्वलित होता है, मनुष्य अपनी शक्तियों का स्वामी हो जाता है। और ये ही मनुष्य के ज्ञान का कारण है, ज्ञान अंतिम घटना है। ज्ञान का अर्थ है : देखने की क्षमता, तब जीवन में कोई दुःख नहीं है;तब जीवन में केवल आनंद है। नींद के कारण मनुष्य का स्वप्न दुखद हो गया है। होश किसी दुःख को नहीं जानता, होश केवल आनंद को जानता है।
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**'स्वशक्ति का प्रचय अर्थात सतत विलास ही उनका विश्व है।'**
ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति सतत अंतरविलास में है, सतत महासुख में है। स्वशक्ति का प्रचय!उसके भीतर उसकी स्वयं की शक्ति अनंत सुखों को जन्म देती है। प्रतिपल वहां सुख का झरना बहता रहता है। मनुष्य के भीतर प्रतिपल सुख के अनंत स्रोत प्रवाहित हो रहे हैं, लेकिन बेहोशी के कारण मनुष्य उन्हें जान नहीं पाता।
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ध्यान रहे, धर्म त्याग नहीं है, धर्म परम् विलास है। पूरा जीवन आनंद का महोत्सव है।जीवन दुःख को नहीं जानता। दुःख मनुष्य की कल्पना है। दुःख को मनुष्य ने जन्म दिया है, क्योंकि अंधा मनुष्य इसके अतिरिक्त और कुछ भी कर नहीं सकता; वो जहां जाएगा, वहीं टकराएगा। लेकिन अंधा ये सोच सकता है कि सारी दुनिया उससे टकराये जा रही है। कोई किसी से क्यों टकराएगा? अंधा व्यक्ति स्वयं ही टकराता है, आँख वाला किसी से नहीं टकराता। ये सूत्र समझना आवश्यक है।
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**'स्वशक्ति का प्रचय अर्थात सतत विलास ही उनका विश्व है।'**
ये ज्ञान की स्थिति जब आ जाती है, तो प्रतिपल आनंद फलित होता रहता है। तब अमृत की वर्षा होती है और दुःख की एक भी किरण प्रवेश नहीं कर पाती।
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