बुधवार, 23 मई 2018

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卐 सत्यराम सा 卐
*दादू डोरी हरि के हाथ है, गल मांही मेरे ।*
*बाजीगर का बांदरा, भावै तहाँ फेरे ॥*
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साभार ~ शोगंगा oshoganga

जिसकी बुद्धि शुद्ध हो, निराकुल हो, तरंगें न उठ रही हों वस्तु श्रवणमात्रेण, बस सुन लिया सत्य को कि हो गई बात, घट गई बात। कुछ करने को शेष नहीं रह जाता है। और ऐसे व्यक्ति के जीवन में, जहां चित्त स्वस्थ है, शुद्ध है बुद्धि, सत्य के श्रवण मात्र से, सिर्फ सत्य के आघात मात्र से, सत्य के संवेदन मात्र से जो मुक्त हुआ है; किसी आग्रह, हठ, योग, नियम, व्रत इत्यादि से नहीं, बोध मात्र से जो मुक्त हुआ है; ऐसे व्यक्ति के जीवन में न तो आचार होता, न अनाचार होता। इतना ही नहीं, उदासीनता भी नहीं होती।
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ये तीन बातें हैं साधारणत:। एक व्यक्ति है अनाचार में भरा हुआ, जिसको हम कहते हैं भोगी। दूसरा व्यक्ति है आचार से भरा हुआ, उसको हम् कहते हैं योगी। इन दोनों के ऊपर एक व्यक्ति है उदासीन जिसके जीवन में अब न आचार रहा, न अनाचार रहा; जो दोनों से हट कर एकदम उदासीन हो गया है। यह तीसरी अवस्था है। अष्टावक्र कहते हैं, एक चौथी अवस्था भी है, उदासीन भी नहीं। यह चौथी अवस्था बड़ी अपूर्व है। इसको समझें। अनाचार में जो पड़ा है, वह जो गलत है उसको भोग रहा है। आचार में जो पड़ा है, वह जो ठीक है उसको भोग रहा है। दोनों का चुनाव है। अनाचारी आधे को चुन लिया, आधे को छोड़ दिया। आचारी ने दूसरे आधे को चुन लिया, पहले आधे को छोड़ दिया। परन्तु पूरा सत्य दोनों के हाथ में नहीं है। इस बात को देख कर उदासीन ने दोनों को छोड़ दिया परन्तु उसके हाथ में भी पूरा सत्य नहीं है। उदासीन तो नकारात्मक अवस्था है। वह बैठ गया तटस्थ होकर। उसने धारा में बहना छोड़ दिया।
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एक चौथी अवस्था है, न आचार, न अनाचार, न उदासीनता। जीवन खड़ा है, व्यक्ति न तो निर्णय करता है कि आचरण से रहूंगा, न निर्णय करता है कि अनाचरण में ही अपने जीवन को डाल कर रहूंगा। हम देखते हैं, साधुओं के भी संकल्प होते हैं, असाधुओं के भी संकल्प होते हैं। साधु कहता है, जो शुभ है वही करूंगा। और असाधु कहता है, देखें कौन क्या बिगाड़ता है, अशुभ को ही करके रहेंगे।
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परन्तु अष्टावक्र कहते हैं, इन तीनों के पार एक वास्तविक चित्तदशा है। 
**क्षण-क्षण जीयो निराग्रह से। न तो निर्णय करो कि शुभ करेंगे, न निर्णय करो कि अशुभ करेंगे, जो परमात्मा करवा ले। जो उसकी इच्छा। उसकी इच्छा पर छोड़ दो। जो भी करेंगे, बोधपूर्वक करेंगे। और जो वह करवा लेगा उसमें प्रसन रहेंगे। ऐसी परम प्रसन्नता की अवस्था चौथी अवस्था है।**

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