卐 सत्यराम सा 卐
*साचा सतगुरु सोधि ले, साचे लीजे साध ।*
*साचा साहिब सोधि करि, दादू भक्ति अगाध ॥*
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साभार ~ Acharya Pandit Lalit Sharma
*"सच्ची जिज्ञासा"*
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एक बार राजा भोज ने सोचा कि क्यों न कवि कालिदास की परिक्षा ली जाए ! तत्क्षण उन्हे राजदरबार मे बुलाया और कहा - 'सुना है, आपकी बडी पारखी दृष्टि है ! नकली व असली का बडी सहजता से पता लगा लेते हो ! आज हम इस बात की परिक्षा लेना चाहते है !'
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ऐसा कहकर राजा भोज ने दो पुष्प मँगवाए ! कालीदास से कुछ दूरी पर उन्हें रखकर पूछा - 'बताइए कि इनमें से असली पुष्प कौन-सा है? यदि आप ठीक-ठीक बता देंगे, तो हम आपको राजकवि घोषित कर देंगे !'
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कालिदास बोले - 'महाराज, अब मैं वृद्ध हो चुका हूँ ! इस कारण नजर कमजोर हो गई है ! जरा आप सारे खिडकी-दरवाजे खुलवा दीजिए !'
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राजा ने तुरन्त सेवकों को कालिदास की मांग पूरा करने का आदेश दिया !
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खिड़की-दरवाजे खुलते ही कालिदास ने एक पुष्प की और इंगित करते हुए कहा - 'राजन, यह असली पुष्प है !' राजा भोज आश्चर्यचकित रह गए, बोले - 'कविवर, दोनों पुष्पों में इतना साम्य होने पर व बिना इन्हें स्पर्श किए, आपने यह कैसे जान लिया कि असली पुष्प यही है? जबकि बडे-बडे विद्वान व पारखी भी यह नहीं बता सकते थे !'
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कालिदास मुस्कुराते हुए बोले - 'राजन, सच्चा प्रेमी प्रियतम को पहचानने में कभी भूल नहीं कर सकता ! खिडकी खुली नहीं कि भंवरा पहुँच गया, अपने मधुमय पुष्प के पास ! आपने देखा नहीं, पहले वह भंवरा नकली पुष्प पर बैठा ! परन्तु अगले ही पल वहाँ से उड़कर असली पुष्प पर जा बैठा और वही टिका रहा !'
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इसी प्रकार सच्चे जिज्ञासु कभी भूल नहीं करते, सदगुरू को पहचानने में ! अपने गंतव्य पर पहुँचकर ही दम लेते है ! और इस काम में परमात्मा भी उनकी पूरी सहायता करते हैं ! अत: सभी जिज्ञासुओं को हमारा यही संदेश है कि जब भी वे गुरू की खोज में निकले, तो हृदय मे सच्ची जिज्ञासा व शास्त्र-ग्रंथों पर आधारित पूर्ण गुरु की कसौटी लेकर ही निकले ! फिर वे कभी धोखा नहीं खाएंगे ।
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