#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*पीसे ऊपर पीसिये, छांणे ऊपर छांण ।*
*तो आत्म कण ऊबरै, दादू ऐसी जाण ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*प्रसिद्ध साधु का अंग ३४*
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बालपने बैलै१ नहीं, यौवन युवती त्याग ।
रज्जब विकल२ न वृद्धपन, उर न अवस्था लाग ॥२६॥
जो बच्चेपन में वस्तु संयोग-वियोग से रोते हुये विलाप१ नहीं करता, यौवन में नारी का त्याग रखता है, वृद्धावस्था के दुखों से बेचैन२ नहीं होता, इस प्रकार तीनों अवस्था जिसके हृदय में नहीं लगती अर्थात विक्षिप्त नहीं करती वही प्रसिद्ध संत है ।
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देखहु ध्रुव प्रहलाद दिशि, सनकादिक शुकदेव ।
रज्जब रहे सु एक रस, आदि अंत मधि१ सेव ॥२७॥
देखो, ध्रुव, प्रहलाद, सनकादिक और शुकदेव जन्म से आयु के अन्त भाग तक तथा मध्य१ में भी भजन में एक रस रहे हैं, इसी से वे प्रसिद्ध संत हैं ।
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रज्जब गर्भि१ न व्यापी गर्भ की, पिंड२ न परस्या४ प्राण३ ।
अन्य घटहुं उरझ्या नहीं, शुकदेव संत सुजान ॥२८॥
गर्भ की दूषित स्थिति१ भी जिनके मन को विक्षप्त न कर सकी, न स्थूल२ वा सूक्ष्म३ शरीर को अध्यास द्वारा छुवा४ अर्थात दोनों शरीरों में आसक्त नहीं हुये, अपने से भिन्न नारी आदि परिवार के शरीरों में भी जिनका मन नहीं फंसा वे ज्ञानी शुकदेव प्रसिद्ध संत है ।
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आप उपाये अमल जन, तहां न माया मैल ।
रज्जब रज परसे नहीं, जैसे सोवन१ शैल२ ॥२९॥
ईश्वर ने जिनकों मल रहित उत्पन्न किया है, उन पर मल नहीं चढ़ता, जैसे सोने१ के पर्वत२ पर काई नहीं चढ़ती, वैसे ही मल रहित प्रसिद्ध संत-जनों के मन माया-मल नहीं चढ़ता ।
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सकल चकहु१ पर चक्कवै२, करै न चिन्ता राज ।
रज्जब रोटी रुध्र मै३, अन्य अधिपति दुख साज ॥३०॥
संत सभी भू-भाग१ पर चक्रवर्ती२ राजा हैं, किन्तु अन्य राजाओं के समान राज्य की चिन्ता नहीं करते, अन्य राजाओं की रोटी तो दंडादि के पैसे से बनी हुयी होने से रक्तमय३ होती है, और दुख की सामग्री रूप है, किन्तु प्रसिद्ध संत रूप राजा की रोटी भिक्षान्न होने से अमृतमय है, और सुख का साधन है, अत: प्रसिद्ध संत राजा से अधिक है ।
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इति श्री रज्जब गिरार्थ प्रकाशिका सहित प्रसिद्ध साधु का अंग ३४ समाप्त । सा. ११३० ॥
(क्रमशः)
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