卐 सत्यराम सा 卐
*मरणा भागा मरण तैं, दुःखैं नाठा दुःख ।*
*दादू भय सौं भय गया, सुःखैं छूटा सुःख ॥*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com
'कथं ज्ञानं?' कैसे होगा ज्ञान? 'कथं मुक्ति?' मुक्ति कैसे होगी। क्योंकि जिसे मनुष्य ज्ञान समझता है, वह तो और बांध देता है; मुक्त कहां करता है? ज्ञान तो वो ही है, जो मुक्त करे - ये ही ज्ञान की कसौटी है। तथाकथित ज्ञानी-पंडित-मुक्त तो प्रतीत नहीं होता, बंधा हुआ होता है; हजार बंधनों में बंधा हुआ होता है। 'कथं मुक्ति?' कैसे होगी मुक्ति? क्या है मुक्ति? स्वतंत्रता मनुष्य की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण आकांक्षा है। सब पा ले, लेकिन गुलामी यदि है; तो पीड़ा देती है। कोई बंधन न हो, ये मनुष्य की निगूढ़तम आकांक्षा है; कोई सीमा न हो, कोई बाधा न हो।
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इसी को मोक्ष की आकांक्षा कहते हैं। हिंदुओं ने बेहद महत्वपूर्ण शब्द चुना है, दुनिया की किसी और धर्म में ऐसा प्यारा शब्द नहीं है। मोक्ष - इस शब्द का संगीत ही अनूठा है। इसका अर्थ ही इतना है : ऐसी परम् स्वतंत्रता जिसमे कोई सीमा, कोई बाधा न हो। इतनी शुद्ध स्वतंत्रता की कोई सीमा न हो। 'कैसे होगा वैराग्य?' चार तरह की जिज्ञासायें हैं। चार ही तरह के लोग हैं। ज्ञानी, मुमुक्षु, अज्ञानी और मूढ़।
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ज्ञानी की जिज्ञासा, जिज्ञासा होती ही नहीं - जान लिया, जानने को अब कुछ शेष नहीं है। पहुंच गए, चित्त शांत हो गया; घर लौट आये, विश्राम में आ गए। ज्ञानी का अर्थ है : जो पूर्णतः जाग्रत और बोधपूर्ण हो गया है। प्रश्न से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रश्न पूछने वाला है, जिज्ञासा करने वाला है। उसकी स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए, वह किस श्रेणी का व्यक्ति है; ये उसे भी ठीक से समझ लेना होगा।
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दुसरी श्रेणी है मुमुक्षु : इस शब्द को समझ लेना जरूरी है । मोक्ष की आकांक्षा -मुमुक्षा ! अभी मोक्ष उपलब्ध नहीं हुआ है, ज्ञानी नहीं है लेकिन मोक्ष की तरफ से दृष्टि फेर नहीं रखी है। मूढ़ नहीं है, मोक्ष के प्रति किन्हीं धारणाओं को नहीं पकड़ रखा है। अज्ञानी भी नहीं है - मुमुक्षु है ! मुमुक्षु का अर्थ है - जिसकी जिज्ञासा सरल है, न तो मूढ़ता से अपवित्र हो रही है और न ही अज्ञानपूर्ण धारणाओं से विकृत हो रही है। शुद्ध है जिज्ञासा और सरल हृदय से निकली है।
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'यदि कोई मुक्ति को चाहता है तो विषयों को विष के समान त्याग दे और क्षमा, आर्जव, दया, संतोष और सत्य को अमृत के समान सेवन करे।'
मुक्तिमिच्छसि चेत्तात् विषयान् विषवत्यज।
शब्द विषय महत्वपूर्ण है - ये विष से ही बना है। विष का अर्थ है जिसे खाने से मनुष्य की मृत्यु हो जाए। जिसे खाने से मनुष्य बार-२ मरता है। बार-२ भोग, बार-२ महत्वाकांक्षा, ईर्ष्या, क्रोध, जलन बार-२ इन्ही को खा-२ कर मनुष्य मरता है। बार-२ इन्हीं को खा-२ कर ही तो मनुष्य की मृत्यु हुयी है। मनुष्य ने अब तक जीवन को जाना कहां है।
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