#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*शब्द का अँग २२*
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दादू वाणी प्रेम की, कमल विकासे होहि ।
साधु शब्द माता कहै, तिन शब्दों मोह्या मोहि ॥१९॥
विचार द्वारा हृदय - कमल सँशय विपर्य्य से रहित होकर जब विकसित होता है तब, भगवत् - प्रेमपूर्ण और प्रभाव डालने वाली वाणी निकलती है । आत्मानुभव से मस्त सँत जो शब्द बोते हैं, उन शब्दों ने ही हमको मोहित किया है ।
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दादू हरि भुरकी वाणी साधु की, सो परियो मेरे शीश ।
छूटे माया मोह तैं, प्रेम भजन जगदीश ॥२०॥
हरि - भक्ति रूप भुरकी(मँत्र प्रयोग युक्त चूर्ण) से परिपूर्ण सँत की वाणी मेरे अन्त:करण रूप मस्तक पर पड़नी चाहिये, जिससे मेरा मन मायिक - मोह से मुक्त होकर प्रेम - पूर्वक जगदीश्वर का भजन कर सके ।
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दादू भुरकी राम है, शब्द कहै गुरु ज्ञान ।
तिन शब्दों मन मोहिया, उन मन लागा ध्यान ॥२१॥
राम - भक्ति ही भुरकी है, उसको अपने शब्दों में मिलाकर गुरुजन ज्ञानोपदेश करते हैं । उन शब्दों में ही हमारा मन मोहित होकर ध्यान द्वारा निर्विकल्प समाधि में लगा रहता है ।
(क्रमशः)
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