गुरुवार, 17 मई 2018

= ९४ =

卐 सत्यराम सा 卐
*सो कुछ हम थैं ना भया, जा पर रीझे राम ।*
*दादू इस संसार में, हम आये बेकाम ॥* 
*किया मन का भावता, मेटी आज्ञाकार ।*
*क्या ले मुख दिखलाइये, दादू उस भरतार ॥* 
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(( महादेव को प्रिय महिम्न: स्तोत्रम् )) 
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एक समय चित्ररथ नामक एक राजा था. राजा चित्ररथ परम शिव भक्त था. उसने एक अद्भुत सुंदर बाग का निर्माण करवाया जिसमें अपनी पसंद से विभिन्न प्रकार के पुष्प लगवाए. चित्ररथ उस बाग को स्वयं अपनी निगरानी में रखता, बाग की सेवा भी करता. चित्ररथ अपने आराध्य भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना के लिए उसी बाग से स्वयं प्रतिदिन पुष्प चुनता और उन पुष्पों को शिवजी को समर्पित करता. 
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एक दिन पुष्पदंत नामक एक गन्धर्व राजा के उद्यान के पास से होकर निकला. उद्यान की सुंदरता देखकर पुष्पदंत मंत्र मुग्ध रह गया. उसने ऐसा सुंदर बाग पृथ्वी पर कहीं न देखा था. उद्यान की सुंदरता ने उसे आकृष्ट कर लिया और उसकी मति भी हर ली. फूलों की सुंदरता पर मोहित पुष्पदंत ने इस बात का ध्यान भी नहीं रखा कि इसी बाग के पुष्पों से प्रति दिन राजा चित्ररथ शिव जी की पूजा करता है. पुष्पदंत ने बाग के फूल चुरा लिए.
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अगले दिन सुबह राजा चित्ररथ नियमित क्रम में पूजा हेतु पुष्प लेने आए लेकिन उन्हें पुष्प प्राप्त नहीं हुए. पर यह तो आरम्भ मात्र था. बाग के सौंदर्य से मुग्ध पुष्पदंत प्रति दिन पुष्प की चोरी करने लगा. इस रहस्य को सुलझाने के राजा के प्रत्येक प्रयास विफल रहे. पुष्पदंत गंधर्व था इसलिए उसके पास लुप्त होने की शक्ति थी. इसलिए राजा उसे पकड़ नहीं पाए. परेशान राजा के पास कोई रास्ता नहीं बचा था. वह समझ गए कि पुष्पों की चोरी कोई मानवीय शक्ति नहीं कर रही इसलिए उसे पकड़ने के लिए शिव शक्ति का प्रयोग ही करना होगा. राजा चित्ररथ भगवान शिव को अर्पित पुष्प एवं विल्वपत्र बाग में इस तरह बिछा दिए कि वे आसानी से दिखाई ही न पड़े.
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पुष्पदंत प्रति दिन की भांति उस दिन फिर से पुष्प चुराने के लिए आया. फूलों की सुगंध में मोहित पुष्पदंत को ध्यान ही नहीं रहा. उसने भूल से शिवजी के चढ़े विल्वपत्रों और पुष्पों को अपने पैरों से कुचल दिया. पुष्पदंत ने जैसे ही फूलों पर पांव रखे उसकी दिव्य शक्तियां समाप्त हो गईं. पुष्पदंत स्वयं भी शिव भक्त था. उसे अपनी गलती का बोध हुआ. उसने शिव जी से क्षमा मांगते हुए उन्हें प्रसन्न करने के लिए एक परम स्तोत्र के रचना की.
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अपने भक्त की कातर प्रार्थना पर भोले नाथ ने उसके अपराध क्षमा कर दिए. शिव जी ने प्रसन्न होकर पुष्पदंत के दिव्य स्वरूप को उसे पुनः प्रदान किया और वह अपने लोक में जा सका. पुष्पदंत ने शिवजी के दिव्य स्वरूप, उनकी सादगी और दयालुता की महिमा गाते हुए 43 छंदों के शिव महिम्न: स्तोत्रम् की रचना की थी. यह शिव भक्तों का एक प्रिय मंत्र है.
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यदि कभी किसी से भूल वश कोई शिव द्रोह हो जाए या कहीं कानों में शिव निंदा पड़ जाए तो इस स्तोत्र का पाठ करने या इसे सुनने से व्यक्ति दोष मुक्त होकर शिव जी को अत्यंत प्रिय हो जाता है. इस स्तोत्र का पाठ करने से शिव जी अत्यंत प्रसन्न होते हैं.
Bhakti Kathayen भक्ति कथायें...
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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