गुरुवार, 17 मई 2018

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#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*जहाँ राम तहँ मैं नहीं, मैं तहँ नाहीं राम ।* 
*दादू महल बारीक है, द्वै को नाहीं ठाम ॥* 
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साभार ~ ऊँ नारायण
ॐ नारायण
अहंकार के रहते तुम किसी से भी कुछ नहीं सिख सकते हो ..... बहुत ही ज्ञानवर्धक कथा जरूर पढें !
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एक नव युवा साधक एक ब्रह्मनिष्ठ संत जी के सत्संग के लिए पहुँचे, वह बातचीत के दौरान बार-बार कहते थे, मैं बहुत धनी परिवार से हूँ, मैंने संस्कृत में उच्च शिक्षा प्राप्त की है और वेद, गीता, महाभारत, पुराणों आदि का गहन अध्ययन किया है।
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संत जी ने कहा, यदि वास्तव में जिज्ञासा लेकर आए हो और धर्म-अध्यात्म का मर्म समझने की तृष्णा है, तो सबसे पहले इस अहंकार का त्याग करो कि तुम बहुत बड़े विद्वान हो। अहंकार के रहते तुम किसी से भी कुछ नहीं सिख सकते हो, उन्होंने कुछ क्षण रुककर कहा, उपनिषदों में व्यास देव जी घोषित करते हैं जो यह कहता है कि मुझे ज्ञान है और बहुत कुछ जानता हूँ।
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उसे यह समझ लेना चाहिए कि वह घोर अज्ञान के अंधकार में भटक रहा है, न जानने का बोध ज्ञान की गुरुता का सर्वोपरि सम्मान है, वही परमात्मा के प्रति समर्पण भी है। उन्होंने आगे कहा, ज्ञान का अहंकार किसी से कुछ सीखने ही नहीं देता है, जो मानव विनम्रता पूर्वक खुद को अज्ञानी मानकर तत्वदर्शी की शरण लेता है, वही आत्मा-परमात्मा व ज्ञान-अज्ञान के भेद को जान सकता है। जिनकी बुद्धि स्थित है और जिसका मन कहीं अटका नहीं है,ऐसा विनयी जिज्ञासु ही ज्ञान के सागर में गोते लगाकर मोती ढूंढ सकता है, सबसे पहले किसी भी प्रकार के अहंकार से शून्य हो जाना जरूरी है।
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अज्ञानता में तुलसीदास जी को अपनी स्त्री में ही सुख व प्रेम दिखाई देता था, पर जब ज्ञान चक्षु खुल गए, तो उनके मुख से निकला...
सियाराम मय सब जग जानी।
करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी॥
इस दृष्टान्त के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं ही पहचानना है, कहीं वह नया साधक "मैं" तो नहीं हैं?
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भगवान और उनके भक्तों की ये अमर कथायें अटूट आस्था और विश्वास का प्रतीक हैं । ये कथायें प्रभु प्रेम के स्नेह को दरसाने के लिए अस्तित्व में आयीं हैं । इन कथाओं के माध्यम से भक्ति के रस को चखते हुए आनन्द के सरोवर में डुबकी लगाएं । ईश्वर की शक्ति के आगे तर्कशीलता भी नतमस्तक हो जाती है । तभी तो चिकित्सा विज्ञान के लोग भी कहते हैं - "दवा से ज्यादा, दुआ काम आएगी ।"
नारायण नारायण
लक्ष्मीनारायण भगवान की जय

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