🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= आयुर्बल-भेद आत्मा-बिचार(ग्रन्थ ३६) =*
*= आत्मस्वरूपवर्णन =*
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*घटै न बढ़ै न आवै जाय ।*
*आतम नभ ज्यौं रह्यौ समाय ॥*
*जो कोई यह समुझै भेद ।*
*सन्त कहैं यौं भाखै बेद ॥१२॥*
यह चेतन आत्मा न घटता है, न बढ़ता है, न कहीं आता है न जाता है(जन्म-मरणरहित है) । आकाश की तरह यह आत्मा सर्वव्यापी है । जो इस देह और आत्मा के अशाश्वतता एवं शाश्वतता के अन्तर को समझ लेगा, वह सन्त है, वही ज्ञानी है । हमारी ऊपर कही बात उपनिषदों का सार है ॥१२ ॥
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*ये चौपाई त्र्यौदश कही ।*
*आतम साक्षी जानों सही ॥*
*सुन्दर सुनै बिचारै कोई ।*
*सो जन मुक्ति सहज ही होइ ॥१३॥*
*॥ समाप्तोऽयं आयुर्बल-भेद आत्माबिचार ग्रन्थः ॥३५॥*
ऊपर की तेरह चौपाइयों में आत्मा का स्वयम्प्रकाशत्व, साक्षित्व, नित्यत्व(सिद्ध कर दिया गया है । महाकवि कहते हैं - इस आत्म-विचार को जो सुनेगा, सुनकर चिन्तन मनन करेगा वह उस आत्म तत्व का साक्षात्कार कर उसकी प्राप्ति से सहज मुक्ति का लाभ ले सकता है ॥१३॥
*॥ आयुर्बलभेद ग्रन्थ समाप्त ॥*
(क्रमशः)
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