#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*जीवित मृतक का अँग २३*
शब्द - अँग के अनन्तर जीवन्मुक्त सँबन्धी विचार करने के लिये "जीवित मृतक का अँग" कहने में प्रवत्त हुये मँगल कर रहे हैं ~
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दादू नमो नमो निरंजनँ, नमस्कार गुरुदेवत: ।
वन्दनँ सर्व साधवा, प्रणामँ पारँगत: ॥१॥
जिनकी कृपा से साधक सँसार - बन्धन से निकलकर जीवन्मुक्त होता है, उन निरंजन राम, सद्गुरु और सर्व सँतों को हम अनेक प्रणाम करते हैं ।
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धरती मत आकाश का, चँद सूर का लेइ ।
दादू पानी पवन का, राम नाम कहि देइ ॥२॥
२ - ४ में जीवन्मुक्त सम्बन्धी विचार कह रहे हैं, पृथ्वी की सहन शक्ति, आकाश की निर्लेपता, चन्द्रमा की सौम्यता, सूर्य की तेजस्विता, जल की निर्मलता, वायु की अनासक्ति इन सबका मत ग्रहण करके रामनाम चिन्तन करता हुआ जो साधक देहाध्यास त्याग देता है, वही जीवन्मुक्तावस्था को प्राप्त होता है ।
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दादू धरती ह्वै रहे, तज कूड़१ कपट ऽहँकार२ ।
सांई कारण शिर सहै, ताको प्रत्यक्ष सिरजनहार ॥३॥
झूठ१, कपट, अहँकार२ आदि को त्याग कर तथा पृथ्वी के समान सहनशील होकर प्रभु - प्राप्ति के लिये कटु - शब्दादि से जन्य दु:खों को सहन करता है, उसे ब्रह्म का साक्षात्कार होता है और वह जीवन्मुक्त हो जाता है ।
(क्रमशः)
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