गुरुवार, 17 मई 2018

= आयुर्बल-भेद आत्मा-बिचार(ग्रन्थ ३६ / ३-४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
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*= आयुर्बल-भेद आत्मा-बिचार(ग्रन्थ ३६) =*
*= आयुर्बल की क्षीणता =*
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*घटत घटत नउवै रहिं जांहिं ।*
*असी वर्ष कै सत्तर मांहिं ॥*
*साठि पचास वर्ष चालीस ।*
*तीस बीस दश एक बरीस ॥३॥*
(कलियुग) में यही सौ वर्ष की आयु घटते-घटते पहले नब्बे वर्ष की होती है, फिर, अस्सी, फिर सत्तर, फिर साठ, पचास यों ह्रास होते-होते क्रमशः चालीस, तीस, बीस, दस औ अन्त में एक वर्ष जाती है ॥३॥
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*एक वर्ष के बारह मास ।*
*ताहू मांहि घटत हैं स्वास ॥*
*ग्यारह दश नव आठ कि सात ।*
*षट कै पांच च्यारि पुनि जात ॥४॥*
फिर धीरे-धीरे(ज्यों-ज्यों पाप बढ़ता है) एक बरस के बारह महीने भी कम होने लगते है, जीवन के श्वास की अवधि कम होने लगती है । फिर ११ महीने, दस, नौ, आठ, सात, छह, पांच और चार महीने ही मनुष्य की आयु रह जाती है ॥४॥
(क्रमशः)

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