#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*शब्द का अँग २२*
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*शब्द समर्थता*
दादू एक शब्द सौं ऊनवे१, वर्षन लागे आइ ।
एक शब्द सौं बीखरे, आप आपको जाइ ॥१३॥
१३ - २५ में शब्द सामर्थ्य बता रहे हैं, एक ईश्वर की आज्ञा रूप शब्द से मेघ चढ़१ आते हैं और बरसने लगते हैं । निषेध रूप एक शब्द से छिन्न - भिन्न होकर अपने आप अपने कारण में जा मिलते हैं अथवा एक ओंकार शब्द के चिन्तन से अंत:कारण के कामादि विकार छिन्न - भिन्न हो, आप अपने कारण में जा मिलते हैं और भक्ति - ज्ञानादि वृद्धि१ को प्राप्त होकर आनन्द की वृष्टि करने लगते हैं ।
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दादू साधु शब्द सौं मिल रहे, मन राखे बिलमाइ ।
साधु शब्द बिन क्यों रहे, तब ही बीखर जाइ ॥१४॥
सँत - शब्दों के विचार में लगकर मन को परमात्मा के स्वरूप में लगाते रहना चाहिये । सँत शब्दों के बिना यह मन रुक नहीं सकता, तत्काल इन्द्रियों के विषयों में फैल जाता है ।
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दादू शब्द जरै१ सो मिल रहे, एक रस पूरा ।
कायर भाजे जीव ले, पग माँडे शूरा ॥१५॥
जो ब्रह्म - ज्ञान पूर्ण सद्गुरु - शब्दों को धारण१ करता है, वह एकरस पूर्ण ब्रह्म में मिलकर ही रहता है । किन्तु सद्गुरु - शब्दों को धारण करने में वैराग्य रूप शौर्य - सँपन्न साधक ही वृत्ति रूप पैर को रोपता है । विषयासक्ति रूप कायरता युक्त जीव अपनी वृत्ति को सद्गुरु - शब्दों से हटाकर विषयों की ओर दौड़ता है ।
(क्रमशः)
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