#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*शब्द का अँग २२*
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शब्दों माँहीं राम धन, जे कोई लेइ विचार ।
दादू इस सँसार में, कबहुं न आये हार ॥२२॥
सँतों के शब्दों में राम रूप धन है, जो भी कोई साधक विचार द्वारा उसे अभेद रूप से धारण करता है, वह विषयासक्ति से हार न मानकर, इस सँसार के जन्म मरण रूप प्रवाह में कभी नहीं आता ।
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दादू राम रसायन भर धर्या, साधुन शब्द मँझार ।
कोई पारिख पीवे प्रीति सौं, समझे शब्द विचार ॥२३॥
सँतों ने अपने शब्दों में जन्म - मृत्यु आदि सम्पूर्ण रोगों को नष्ट करने वाला राम भक्तिर - रसायन भर रक्खा है । उनका परीक्षक कार्य विरला साधक ही बारँबार विचार द्वारा उन्हें समझ कर प्रीतिपूर्वक रामभक्ति - रसायन पान करता है ।
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शब्द सरोवर सूभर१ भर्या, हरि जल निर्मल नीर ।
दादू पीवे प्रीति सौं, तिन के अखिल शरीर ॥२४॥
सँतों का शब्द रूप सुन्दर१ सरोवर ब्रह्म - ज्ञान रूप निर्मल जल से परिपूर्ण रूप से भरा है । उस नीर को जो पान करते हैं, उनके आगे आने वाले सँपूर्ण शरीर उन्हें ब्रह्म - रूप ही भासते हैं और वे ब्रह्म में ही लय हो जाते हैं ।
(क्रमशः)
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