#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= १-जकड़ी राग गौड़ी =*
.
(४)
(पूर्वी बोली मिश्रित)
हरि भजि बौरी हरि भजु त्यजु नैहर कर मोहु ।
पिव लिनहार पठाइहि इक दिन होइहि बिछोहु ॥(टेक)
अरी पागल ! भगवान् का भजन कर । यह नैहर(मातृगृह) का मोह त्याग दे । अरी ! किसी दिन तुम्हारे पति तुम्ह को बुलाने के लिये किसी को भेज देंगे, तब तुझ को जाना ही होगा । तब भी तो तेरा इस मातृ गृह से वियोग हो ही जायगा ॥टेक॥
आपुहि आपु जतन करु जौं लगि बारि बयेस ।
आन पुरुष जिनि भेटहु केंहुके उपदेस ॥१॥
तू स्वयं कोई गम्भीरता से प्रयत्न कर और यह बचपन त्याग दे । किसी के बहकावे में आकर अन्य पुरुष से प्रीति न बढ़ा ॥१॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें