मंगलवार, 26 जून 2018

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卐 सत्यराम सा 卐
*सूता काल जगाइ कर, सब पैसैं मुख मांहि ।*
*दादू अचरज देखिया, कोई चेतै नांहि ॥* 
*सब जीव बिसाहैं काल को, कर कर कोटि उपाइ ।*
*साहिब को समझैं नहीं, यों परलै ह्वै जाइ ॥*
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*क्या मैं भी मर जाऊंगा ?*

क्या मैं भी मर जाऊंगा? लेकिन यह प्रश्‍न भी दार्शनिक की तरह भी पूछा जा सकता है और धार्मिक की तरह भी पूछा जा सकता है। जब हम दार्शनिक की तरह पूछते है, तब फिर बफर खड़ा हो जाता है। तब हम मृत्यु के संबंध में सोचने लगते है, ‘मैं’ के संबंध में नहीं। जब धार्मिक की तरह पूछते है। तो मृत्यु महत्वपूर्ण नहीं रह जाती, मै महत्वपूर्ण हो जाता हूं।
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सारथी ने कहा कि किस मुंह से मैं आपसे कहूं कि आप भी मरेंगे। क्योंकि यह कहना अशुभ है। लेकिन झूठ भी नहीं बोल सकता है मरना तो पड़ेगा ही, आपको भी। तो बुद्ध ने कहा, रथ वापस लौटा लो, क्योंकि मै मर ही गया। जो बात होने ही वाली है वह हो ही गयी। अगर यह निश्‍चित ही है तो तीस, चालीस, पचास साल बाद क्या फर्क पड़ता है ! बीच के पचास साल, मृत्यु जब निश्‍चित ही है तो आज हो गयी, वापस लौटा लो।’
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वे जा रहे थे एक युवक महोत्सव में भाग लेने, यूथ फेस्टिवल में भाग लेने। रथ बीच से वापस लौटा लिया। उन्होंने कहा, ‘अब मैं बूढ़ा हो ही गया। अब युवक महोत्सव में भाग लेने का कोई अर्थ न रहा। युवक महोत्सव में तो वे ही लोग भाग ले सकते है, जिन्हें मृत्यु का कोई पता नहीं है। और फिर मैं मर ही गया।’ सारथी ने कहा, ‘अभी तो आप जीवित है, मृत्यु तो बहुत दूर है।’ 
*यह बफर है। बुद्ध का बफर टूट गया, सारथी का नहीं टूटा। सारथी कहता है कि मृत्यु तो बहुत दूर है।*
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हम सभी सोचते हैं मृत्यु होगी लेकिन सदा बहुत दूर, कभी - ध्यान रहे, आदमी के मन की क्षमता है - जैसे हम एक दीये का प्रकाश लेकर चलें, तो दो, तीन, चार कदम तक प्रकाश पड़ता है ऐसे ही मन की क्षमता है। बहुत दूर रख दें किसी चीज को तो फिर मन की पकड़ के बाहर हो जाता है। मृत्यु को हम सदा बहुत दूर रखते है। उसे पास नहीं रखते। मन की क्षमता बहुत कम है। इतने दूर की बात व्यर्थ हो जाती है। एक सीमा है हमारे चिंतन की। 
*दूर जिसे रख देते हैं, वह बफर बन जाता है।*
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हम सब सोचते है, मृत्यु तो होगी; लेकिन बूढ़े से बूढ़ा आदमी भी यह नहीं सोचता कि मृत्यु आसन्न है। कोई ऐसा नहीं सोचता कि मृत्यु अभी होगी; सभी सोचते है, कभी होगी। जो भी कहता है, कभी होगी, उसने बफर निर्मित कर लिया। वह मरने के क्षण तक भी सोचता रहेगा कभी.. .कभी, और मृत्यु को दूर हटाता रहेगा। 
*अगर बफर तोड़ना हो तो सोचना होगा, मृत्यु अभी, इसी क्षण हो सकती है।*
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यह बड़े मजे की बात है कि बच्चा पैदा हुआ और इतना बूढ़ा हो जाता है कि उसी वक्त मर सकता है। हर बच्चा पैदा होते ही काफी का हो जाता है कि उसी वक्त चाहे तो मर सकता है। बूढ़े होने के लिए कोई सत्तर - अस्सी साल रुकने की जरूरत नहीं है। जन्मते ही हम मृत्यु के हकदार हो जाते है। जन्म के क्षण के साथ ही हम मृत्यु में प्रविष्ट हो जाते है।
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जन्म के बाद मृत्यु समस्या है और किसी भी क्षण हो सकती है। जो आदमी सोचता है, कभी होगी, वह अधार्मिक बना रहेगा। जो सोचता है, अभी हो सकती है, इसी क्षण हो सकती है, उसके बफर टूट जायेंगे। क्योंकि अगर मृत्यु अभी हो सकती है तो आपकी जिंदगी का पूरा पर्सपेक्टिव, देखने का परिप्रेक्ष्य बदल जायेगा। किसी को गाली देने जा रहे थे, किसी की हत्या करने जा रहे थे, किसी का नुकसान करने जा रहे थे, किसी से झूठ बोलने जा रहे थे, किसी की चोरी कर रहे थे, किसी की बेईमानी कर रहे थे; मृत्यु अभी हो सकती है तो नये ढंग से सोचना पडेगा कि झूठ का कितना मूल्य है अब, बेईमानी का कितना मूल्य है अब। अगर मृत्यु अभी हो सकती है, तो जीवन का पूरा का पूरा ढांचा दूसरा हो जायेगा।
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बफर हमने खड़े किये हैं। पहला कि मृत्यु सदा दूसरे की होती है, इट इज आलवेज दी अदर हू डाइज। कभी भी आप नहीं मरते, कोई और मरता है। दूसरा, मृत्यु बहुत दूर है, चिंतनीय नहीं है। लोग कहते हैं, अभी तो जवान हो, अभी धर्म के संबंध में चिंतन की क्या जरूरत है? उनका मतलब आप समझते हैं? वे यह कह रहे हैं, अभी जवान हो, अभी मृत्यु के संबंध में चिंतन की क्या जरूरत है?

Osho ~ Zorba The Buddha

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