#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*शूरातन का अँग २४*
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*शूरवीर - कायर*
शूरा चढ संग्राम को, पाछा पग क्यों देइ ?
साहिब लाजे भाजताँ, धिग् जीवन दादू तेइ ॥१३॥
१३ - १८ में साधक शूर और कायर का परिचय दे रहे हैं, साधक - शूर साधन - संग्राम से कैसे हट सकता है ? हटने से उसके स्वामी को लाज लगती है और उसके शेष जीवन में लोग उसे धिक्कार ही देते हैं ।
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सेवक शूरा राम का, सोई कहेगा राम ।
दादू शूर सन्मुख रहे, नहिं कायर का काम ॥१४॥
जो अहँकारादिक को नष्ट करने में वीर होगा, वही राम का सेवक राम - भजन कर सकेगा। कारण, वीर ही साधन - संग्राम में आसुरी - गुण रूप शत्रुओं को नष्ट करके परमात्मा के सन्मुख रहता है । विषयी - कायर का यह काम नहीं है, वह तो कामादिक से हार - मानकर विषयों में ही लगा रहता है ।
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कायर काम न आवही, यहु शूरे का खेत ।
तन मन सौंपे राम को, दादू शीश सहेत ॥१५॥
कामी - कायर इस साधना - रणक्षेत्र में काम नहीं आते । यह तो जो तन, मन और अहँकार रूप शीश सप्रेम राम को समर्पण करते हैं, उन साधक शूरों के योग्य है ।
(क्रमशः)
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