बुधवार, 27 जून 2018

= शूरातन का अँग(२४ - १३/१५) =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*शूरातन का अँग २४* 
*शूरवीर - कायर* 
शूरा चढ संग्राम को, पाछा पग क्यों देइ ? 
साहिब लाजे भाजताँ, धिग् जीवन दादू तेइ ॥१३॥ 
१३ - १८ में साधक शूर और कायर का परिचय दे रहे हैं, साधक - शूर साधन - संग्राम से कैसे हट सकता है ? हटने से उसके स्वामी को लाज लगती है और उसके शेष जीवन में लोग उसे धिक्कार ही देते हैं । 
सेवक शूरा राम का, सोई कहेगा राम । 
दादू शूर सन्मुख रहे, नहिं कायर का काम ॥१४॥ 
जो अहँकारादिक को नष्ट करने में वीर होगा, वही राम का सेवक राम - भजन कर सकेगा। कारण, वीर ही साधन - संग्राम में आसुरी - गुण रूप शत्रुओं को नष्ट करके परमात्मा के सन्मुख रहता है । विषयी - कायर का यह काम नहीं है, वह तो कामादिक से हार - मानकर विषयों में ही लगा रहता है ।
.
कायर काम न आवही, यहु शूरे का खेत । 
तन मन सौंपे राम को, दादू शीश सहेत ॥१५॥ 
कामी - कायर इस साधना - रणक्षेत्र में काम नहीं आते । यह तो जो तन, मन और अहँकार रूप शीश सप्रेम राम को समर्पण करते हैं, उन साधक शूरों के योग्य है । 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें