मंगलवार, 26 जून 2018

= १६३ =


卐 सत्यराम सा 卐
*धनि धनि साहिब तू बड़ा, कौन अनुपम रीत ।*
*सकल लोक सिर सांइयां, ह्वै कर रह्या अतीत ॥* 
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साभार ~ Chetna Kanchan Bhagat

एक राजा का फलों का विशाल बगीचा था। उसमें तरह-तरह के फल होते थे और उस बगीचे की सारी देखरेख एक किसान अपने परिवार के साथ करता था। वह किसान हर दिन बगीचे के ताज़े फल लेकर राजा के राजमहल में जाता था।
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एक दिन किसान ने पेड़ों पे देखा नारियल, अमरुद, बेर, और अंगूर पक कर तैयार हो रहे हैं, किसान सोचने लगा आज कौन सा फल महाराज को अर्पित करूँ, फिर उसे लगा अँगूर करने चाहिये क्योंकि वो तैयार हैं और बहुत जल्द दूसरे फलों की अपेक्षा खराब भी हो जायेंगे इसलिये उसने अंगूरों की टोकरी भर ली और राजा को देने चल पड़ा !
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किसान जब राजमहल में पहुचा, राजा किसी दूसरे ख्याल में खोया हुए थे और नाराज भी लग रहे थे, किसान ने रोज की तरह मीठे रसीले अंगूरों की टोकरी राजा के सामने रख दी और थोड़े दूर बेठ गया। अब राजा उसी अपने खयालों-खयालों में टोकरी में से अंगूर उठाते, एक खाते और एक खींच कर किसान के माथे पे निशाना साधकर फेंक देते। राजा का अंगूर जब भी किसान के माथे या शरीर पर लगता था किसान कहता था, ‘ईश्वर बड़ा दयालु है’ राजा फिर और जोर से अंगूर फेंकते थे किसान फिर वही कहता था ‘ईश्वर बड़ा दयालु है’।
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थोड़ी देर बाद राजा को एहसास हुआ की वो क्या कर रहे है और प्रत्युत्तर क्या आ रहा है, वो सम्भल कर बैठे और किसान से कहा, मैं तुझे बार-बार अंगूर मार रहा हूँ, और ये अंगूर तुम्हें लग भी रहे हैं, फिर भी तुम यह बार-बार क्यों कह रहे हो कि ‘ईश्वर बड़ा दयालु है’
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*किसान नम्रता से बोला, महाराज, बागान में आज नारियल, बेर और अमरुद भी तैयार थे पर मुझे भान हुआ क्यों न आज आपके लिये अंगूर् ले चलूं, लाने को मैं अमरुद और बेर भी ला सकता था पर मैं अंगूर लाया। यदि अंगूर की जगह नारियल, बेर या बड़े बड़े अमरुद रखे होते तो आज मेरा हाल क्या होता? इसीलिए मैं कह रहा हूँ कि ‘ईश्वर बड़ा दयालु है’ !!*
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इसी प्रकार ईश्वर-मालिक भी हमारी कई विपत्तियों को बहुत हल्का कर के हमें उबार लेते हैं पर ये तो हम ही हैं जो उनका धन्यवाद न मानते हुए उन्हें ही अपराधी ठहरा देते हैं। मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ, मेरा क्या दोष। भाई, आज जो भी खेती हम काट रहे हैं ये दरअसल हमारी ही बोई हुई है, बोया बीज बबूल का तो आम कहाँ से होये।
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आज हमारे पास जो कुछ भी है अगर वास्तविकता के धरातल पर खड़े होकर देखेंगे तो वास्तव में हम इसके लायक भी नही हैं पर उसके पश्चात मेरे ईश्वर ने, मेरे मालिक ने मुझे आवश्यकता से अधिक दिया है और बदले में उनका आभारी होने के स्थान पर हम उन्हें सदा दोष ही देते रहते हैं। पर वे तो हमारे माता-पिता हैं हमारी किसी भी बात का कभी बुरा नहीं मानते और अपना आशीर्वाद हम पर बरसाते रहते हैं। अगर एक बार उनके आशीर्वाद की तरफ देखेंगे तो सारी आयु भी उनका आभारी होने के लिए कम पड़ेगी।

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