#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*जीवित मृतक का अँग २३*
.
दादू जीवित मृतक ह्वै रहे, सबको विरक्त होइ ।
काढो काढो सब कहैं, नाम न लेवे कोइ ॥४३॥
जो महानुभाव जीवितावस्था में ही मृतक के समान सबसे उदासीन रहता है तो घर के स्वार्थी लोग जैसे मृतक को शीघ्र निकालो - २ कहते हैं, वैसे ही उसे भी कहते हैं, रखने का नाम कोई भी नहीं लेता ।
.
जरण
सारा१ गहिला२ ह्वै रहे, अन्तरयामी जाणि ।
तो छूटे सँसार तैं, रस पीवे सारँगपाणि३ ॥४४॥
४४ - ४५ में अपनी पारमार्थिक योग्यता अन्यों के आगे प्रकट न करने की विशेषता बता रहे हैं जो प्राणी अन्तर्यामी परमात्मा के स्वरूप को जानकर, साँसारिक प्राणियों से सब१ प्रकार पागल२ - सा होकर रहते हुये परमेश्वर३ के भजन - रस का पान करे, तो ही सँसार बँधन से मुक्त हो सकता है ।
.
गूँगा गहिला बावरा, सांई कारण होइ ।
दादू दिवाना ह्वै रहे, ताको लखे न कोइ ॥४५॥
परमात्मा की प्राप्ति के लिए भजन में इतना मस्त होकर रहे कि सँसारी प्राणी उसे गूँगा, अनसमझ तथा पागल समझें और कोई पहचान भी न सके कि यह सँत है ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें