मंगलवार, 19 जून 2018

= जीवित मृतक का अँग(२३ - ४६/८) =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*जीवित मृतक का अँग २३* 
*जीवित - मृतक* 
जीवित मृतक साध की, वाणी का परकास । 
दादू मोहे रामजी, लीन भये सब दास ॥४६॥ 
जीवन्मुक्त सँत की वाणी की विशेषता बता रहे हैं, जीवन्मुक्त सँत की वाणी का ज्ञान - प्रकाश इतना अद्भुत होता है कि उसे सुनकर स्वयँ रामजी भी मोहित होते हैं और सब भक्तजन उसमें लीन रहते हैं ।
*उभय असमाव* 
दादू जे तूँ मोटा मीर१ है, सब जीवों में जीव । 
आपा देख न भूलिये, खरा दुहेला पीव ॥४७॥ 
४७ - ४९ में कहते हैं, अहँकार रहते भगवत् प्राप्ति असंभव है - ४७ में सांभर के काजी और विलँदखान को उपदेश कर रहे हैं - हे काजी ! यदि तुम धर्माचार्य१ हो तथा हे विलँदखान ! तुम सब जीवों में बड़े सरदार१ हो तो, इस बड़ेपन के अहँकार को देखकर भगवत् - प्राप्ति का मार्ग मत भूलो । कारण, अहँकार के रहते हुए परमेश्वर प्राप्ति कठिन है । यह वचन सत्य समझो । 
आपा मेट समाइ रहु, दूजा धँधा बाद । 
दादू काहे पच मरे, सहजैं सुमिरण साध ॥४८॥ 
कठौर तप - व्रतादिक करने में पच - पच कर क्यों कष्ट उठाता है ? नाम - स्मरण रूप साधना द्वारा अनायास ही सब अहँकार को मिटाकर परब्रह्म के स्वरूप में समाकर रह । अन्य सब साँसारिक कार्य परब्रह्म प्राप्ति के साधन न होने से तथा बन्धन के कारण होने से व्यर्थ हैं । 
(क्रमशः)

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