बुधवार, 20 जून 2018

= जीवित मृतक का अँग(२३ - ४९/५१) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*जीवित मृतक का अँग २३*
.
दादू आपा मेटे एक रस, मन अस्थिर लै लीन । 
अरस परस आनन्द करे, सदा सुखी सो दीन ॥४९॥ 
प्रथम सब प्रकार के अहँकार को मिटाता है और चँचल मन को सम्यक् स्थिर करके एकरस परमात्मा के स्वरूप में वृत्ति लीन करता है, वह दीन साधक परमात्मा से साक्षात् मिलने का आनँद प्राप्त करता हुआ सदा के लिए सुखी हो जाता है । 
*स्मरण नाम निस्सँशय* 
हमौं हमारा कर लिया, जीवित करणी सार । 
पीछे सँशय को नहीं, दादू अगम अपार ॥५०॥ 
अपनी स्मरण - साधना का सँशय रहित फल बता रहे हैं, हमने अपनी जीवितावस्था में ही स्मरण रूप कर्त्तव्य करके विश्व के सार अगम अपार परब्रह्म को प्राप्त कर लिया है । देहान्त के पीछे क्या होगा ? ऐसा कोई सँशय हमारे मन में नहीं है । 
*मध्य निर्पक्ष* 
माटी१ माँहीं ठौर कर, माटी२ माटी३ माँहिं । 
दादू सम४ कर राखिये, द्वै पख दूविधा५ नाँहिं ॥५१॥ 
इति जीवत मृतक का अँग समाप्त ॥२३॥सा - २००५॥ 
मध्य निष्पक्ष मार्ग द्वारा जीवित - मृतक होकर ब्रह्म में अभेद होने की प्रेरणा कर रहे हैं मुमुक्षु इस मिट्टी रूप स्थूल - शरीर२ के अहँकार को मिही३ में मिला दे अर्थात् नष्ट कर दे और जीवित रहते हुए भी स्वयँ को मृतक - मृत्तिकावत्४ समझे ताकि द्वैत - बुद्धि व पक्षपात रूप दुविधा न रहे । इस प्रकार अन्त:करण को सहज सम करके जरणाधारी क्षमाशील१ परमात्मा के स्वरूप में अपने रहने की ठौर तैयार कर नि:सँशय५ उसी में लय हो जाये । 
इति श्री दादू गिरार्थ प्रकाशिका जीवित मृतक का अँग समाप्त : ॥२३॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें