#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*जीवित मृतक का अँग २३*
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पहली तन मन मारिये, इनका मर्दै मान ।
दादू काढे जँत्र में, पीछे सहज समान ॥४०॥
प्रथम सँयम के द्वारा अनावश्यक क्रिया और मनोरथों को हटाकर स्थूल शरीर तथा मन को जय कर लेना चाहिए, इस प्रकार इनका साँसारिक अभिमान नष्ट करके ज्ञान रूप जँतरी(तार को खैंच कर सीधा करने का औजार) में से निकाल कर सरल कर लेना चाहिए, फिर ये अनायास ही परमात्मा के स्वरूप में लग जायेंगे ।
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काटे ऊपर काटिये, दाधे को दौं१ लाइ ।
दादू नीर न सींचिये, तो तरुवर बधता जाइ ॥४१॥
अहँकारादिक आसुरी गुणों को नष्ट कर देने पर भी उनका खँडन ही करते रहना चाहिए । यह अभिमान न करना चाहिए कि मैंने सबको जीत लिया है, अब वे मेरा क्या कर सकते हैं ? भोग - वासना को जला देने पर भी विचार अग्नि१ द्वारा जलाते ही रहना चाहिए । विषय - प्रवृत्ति रूप जल अन्त:करण रूप आल - बाल(वृक्ष - थाँवला) में कभी भी नहीं सींचना चाहिए । यदि ऐसा करोगे तब तो तुम्हारा ज्ञानरूप वृक्ष प्रतिदिन बढ़ता ही जायेगा ।
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दादू सबको सँकट एक दिन, काल गहैगा आइ ।
जीवित मृतक ह्वै रहे, ताके निकट न जाइ ॥४२॥
एक दिन काल आकर पकड़ेगा तब सबको सँकट होगा, किन्तु जो जीवन्मुक्त हो जाता है, उसके निकट काल नहीं आता । उसका तो स्थूल सूक्ष्म सँघात अपने आप ही अपने - अपने कारण में लय हो जाता है और चेतन व्यापक - चेतन में लय हो जाता है । अत: अन्य के समान उसे लेने काल दूत नहीं आता ।
(क्रमशः)
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