बुधवार, 13 जून 2018

= १३८ =

卐 सत्यराम सा 卐 
*जो मति पीछे ऊपजै, सो मति पहली होइ ।*
*कबहुं न होवै जीव दुखी, दादू सुखिया सोइ ॥* 
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गिद्धों का एक झुण्ड खाने की तलाश में भटक रहा था। उड़ते – उड़ते वे एक टापू पे पहुँच गए। वो जगह उनके लिए स्वर्ग के समान थी। हर तरफ खाने के लिए मेंढक, मछलियाँ और समुद्री जीव मौजूद थे और इससे भी बड़ी बात ये थी कि वहां इन गिद्धों का शिकार करने वाला कोई जंगली जानवर नहीं था और वे बिना किसी भय के वहां रह सकते थे।
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युवा गिद्ध कुछ ज्यादा ही उत्साहित थे, उनमे से एक बोला, वाह ! मजा आ गया, अब तो मैं यहाँ से कहीं नहीं जाने वाला, यहाँ तो बिना किसी मेहनत के ही हमें बैठे -बैठे खाने को मिल रहा है ! बाकी गिद्ध भी उसकी हाँ में हाँ मिला खुशी से झूमने लगे।
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सबके दिन मौज -मस्ती में बीत रहे थे लेकिन झुण्ड का सबसे बूढ़ा गिद्ध इससे खुश नहीं था। एक दिन अपनी चिंता जाहिर करते हुए वो बोला, भाइयों, हम गिद्ध हैं, हमें हमारी ऊँची उड़ान और अचूक वार करने की ताकत के लिए जाना जाता है। पर जबसे हम यहाँ आये हैं हर कोई आराम तलब हो गया है।
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ऊँची उड़ान तो दूर ज्यादातर गिद्ध तो कई महीनो से उड़े तक नहीं है और आसानी से मिलने वाले भोजन की वजह से अब हम सब शिकार करना भी भूल रहे हैं। ये हमारे भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। मैंने फैसला किया है कि मैं इस टापू को छोड़ वापस उन पुराने जंगलो में लौट जाऊँगा। अगर मेरे साथ कोई चलना चाहे तो चल सकता है। बूढ़े गिद्ध की बात सुन बाकी गिद्ध हंसने लगे।
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किसी ने उसे पागल कहा तो कोई उसे मूर्ख की उपाधि देने लगा। बेचारा बूढ़ा गिद्ध अकेले ही वापस लौट गया। समय बीता, कुछ वर्षों बाद बूढ़े गिद्ध ने सोचा ना जाने मैं अब कितने दिन जीवित रहूँ, क्यों न एक बार चल कर अपने पुराने साथियों से मिल लिया जाए।
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लम्बी यात्रा के बाद जब वो टापू पे पहुंचा तो वहां का दृश्य भयावह था। ज्यादातर गिद्ध मारे जा चुके थे और जो बचे थे वे बुरी तरह घायल थे। “ये कैसे हो गया ?”, बूढ़े गिद्ध ने पूछा। कराहते हुए एक घायल गिद्ध बोला, हमें क्षमा कीजियेगा, हमने आपकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया और आपका मजाक तक उड़ाया। 
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दरअसल, आपके जाने के कुछ महीनो बाद एक बड़ी सी जहाज इस टापू पे आई और चीतों का एक दल यहाँ छोड़ गयी। चीतों ने पहले तो हम पर हमला नहीं किया, पर जैसे ही उन्हें पता चला कि हम सब न ऊँचा उड़ सकते हैं और न अपने पंजो से हमला कर सकते हैं।
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उन्होंने हमे खाना शुरू कर दिया। अब हमारी आबादी खत्म होने की कगार पर है बस हम जैसे कुछ घायल गिद्ध ही जीवित बचे हैं। बूढ़ा गिद्ध उन्हें देखकर बस अफसोस कर सकता था, वो वापस जंगलों की तरफ उड़ चला।
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दोस्तों, अगर हम अपनी किसी शक्ति का उपयोग नहीं करते तो धीरे-धीरे हम उसे खो देते हैं। उदाहरण के लिए, अगर हम अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करते तो उसकी तेजस्विता घटती जाती है, अगर हम अपनी मांसपेशियों का उपयोग नहीं करते तो उनकी शक्ति क्षीण हो जाती है इसी तरह अगर हम अपनी कलाओं का उपयोग नहीं करते तो हमारी काम करने की योग्यता कम होती जाती है।
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तेजी से बदलती इस दुनिया में हमें खुद को बदलाव के लिए तैयार रखना चाहिए। पर बहुत बार हम अपने वर्त्तमान कार्य या व्यापार में इतने रम हो जाते हैं कि बदलाव के बारे में सोचते ही नहीं और अपने अन्दर कोई नवीनता का अनुभव नहीं करते, अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए कोई पुस्तक नहीं पढ़ते किसी शैक्षणिक आयोजन में सम्मिलित नहीं होते, यहाँ तक की हम उन चीजों में भी मंद हो जाते हैं जिनकी वजह से कभी हमें जाना जाता था और फिर जब कारोबारी व्यवस्थाएं परिवर्तित होती हैं और हमारी नौकरी या व्यापार पर आंच आती है तो हम हालात को दोष देने लगते हैं।
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ऐसा मत करिये अपनी योग्यता अपनी शक्ति को जीवित रखिये अपने कौशल, अपने हुनर को और तराशिये उस पर धूल मत जमने दीजिये और जब आप ऐसा करेंगे तो बड़ी से बड़ी मुसीबत आने पर भी आप ऊँची उड़ान भर पायेंगे।

जयश्रीराम

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