गुरुवार, 14 जून 2018

= जीवित मृतक का अँग(२३ - ३७/९) =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*जीवित मृतक का अँग २३* 
सांई कारण माँस का, लोही पानी होइ । 
सूखे आटा अस्थि का, दादू पावे सोइ ॥३७॥ 
परमात्मा की प्राप्ति के लिए तीव्रतम साधना करते - करते किसी साधक के शरीर का माँस रक्त के समान शिथिल हो जाता है और रक्त पानी के समान पतला हो जाता है, कदाचिद् हड्डी की मज्जा सूखकर आटे के समान हो जाती है । जब साधक ऐसा जीवित - मृतक होता है तब वह परमात्मा को प्राप्त करता है । इसमें मँकण ऋषि और शँकरजी का उदाहरण प्रसिद्ध है ।
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तन मन मैदा पीसकर, छांण छांण ल्यौ लाइ । 
यौं बिन दादू जीव का, कबहूं साल न जाइ ॥३८॥ 
स्थूल शरीर की क्रियाओं को और मन के मनोरथों को विवेक रूप चक्की से मैदा के समान पीसकर अर्थात् अच्छे - बुरे कर्म तथा मनोरथों का सम्बन्ध - विच्छेद करके फिर विचार रूप चलनी से बारँबार छांण कर बुरे कर्म और बुरे मनोरथों को निकाल कर फेंक दें, पश्चात् अपनी वृत्ति परमात्मा के स्वरूप में लगायें । ऐसा किये बिना जीव का जन्मादिक सँसार - क्लेश कभी भी नष्ट नहीं होता ।
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पीसे ऊपर पीसिये, छांणे ऊपरि छाण । 
तो आत्म कण ऊबरे, दादू ऐसी जाण ॥३९॥ 
३७ में कथित पद्धति से पीसना और छानना बारँबार करने पर आत्म रूप कण जन्म रूप उगने से बच जाता है । जैसे पीसने - छानने से दाणे की उगने की शक्ति नष्ट हो जाती है, वैसे ही विवेक - विचार द्वारा कर्म और आसुरी गुणों के नष्ट हो जाने से जीवात्मा के जन्म का अभाव हो जाता है, तुम यह निश्चय पूर्वक जानो । जन्माभाव की साधन पद्धति ऐसी ही है । 
(क्रमशः)

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