गुरुवार, 14 जून 2018

= १४० =


卐 सत्यराम सा 卐 
*दादू भावैं भाव समाइ ले, भक्तैं भक्ति समान ।*
*प्रेमैं प्रेम समाइ ले, प्रीतैं प्रीति रस पान ॥* 
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साभार ~ Pardeep Grover

*श्री हरी*
कर्माबाई भगवान को बालभाव से भजती थीं. ठाकुरजी से पुत्र की तरह बातें करती. एक दिन बिहारीजी को अपने हाथ से कुछ बनाकर खिलाना चाहा. गोपाल बोले - जो भी बना है वही खिला दो. खिचड़ी बनी थी. ठाकुरजी ने चाव से खाया. कर्माबाई पंखा झलने लगीं कि कहीं गोपाल के मुंह न जल जाए.
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भगवान ने कहा - मेरे लिए खिचड़ी बनाया करो. रोज सुबह उठतीं पहले खिचड़ी बनातीं. बिहारीजी आते खिचड़ी खाकर जाते. एकबार एक साधु कर्माबाईजी के घर आया. उसने सुबह-सुबह खिचड़ी बनाते देखा तो कहा-नहा धोकर भगवान के लिए प्रसाद बनाओ.
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कर्माबाई बोलीं - क्या करूं,गोपाल सुबह-सुबह भूखे आ जाते हैं. उसने चेताया भगवान को अशुद्ध मत करो. स्नान के बाद रसोई साफ करो फिर भोग बनाओ.
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सुबह भगवान आए और खिचड़ी मांगा. वह बोलीं -स्नान कर रही हूँ, रुको ! थोड़ी देर बाद भगवान ने फिर आवाज लगाई. वह बोलीं - सफाई कर रही हूं. भगवान ने सोचा आज माँ को क्या हो गया.
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भगवान ने झटपट खिचड़ी खायी, पर खिचड़ी में भाव का स्वाद नहीं आया. जल्दी में बिना पानी पिए ही भागे, संत को देखा तो समझ गए. मंदिर के पुजारी ने पट खोले तो देखा भगवान के मुख से खिचड़ी लगी है. प्रभु ! खिचड़ी आप के मुख में कैसे लगी.
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भगवान ने कहा - आप उस संत को समझाओ, मेरी माँ को कैसी पट्टी पढाई. पुजारी ने संत से सारी बात कही. वह कर्माबाई से बोला - ये नियम संतो के लिए हैं. आप जैसे चाहो बनाओ.
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एकदिन कर्माबाईजी के भी प्राण छूटे. उसदिन भगवान बहुत रोए. पुजारी ने भगवान को रोता देख कारण पूछा. वह बोले - आज माँ इस लोक से विदा हो गई. अब मुझे कौन खिचड़ी खिलाएगा.
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पुजारी ने कहा - प्रभु माता की कमी महसूस न होने दी जाएगी. आज से सबसे पहले रोज खिचड़ी का भोग लगेगा इस तरह आज भी जगन्नाथ भगवान को खिचड़ी का भोग लगता है.

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