#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १-जकड़ी राग गौड़ी =*
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(३)
*गुनधारी गुन सौं रंजै रे निर्गुन अगम अगाध ।*
*सकल निरंतर रमि रह्या ताहि सुमिरै कोइ एक साध ॥५॥*
सगुण देवता सगुण पूजा से ही प्रसन्न होते हैं, परन्तु निर्गुण ब्रह्म की उपासना एकमात्र अगम्य एवं अगाध के चिन्तन से ही पूर्ण हो पाती है । इसे कोई निराकारोपासक साधु ही पूर्ण कर पाता है ॥५॥
*जरा मरन तैं रहित है रे कीजै ताकी सेव ।*
*जन सुन्दर वासौं लग्या जौ है अविनासी देव ॥६॥*
वह निराकार ब्रह्म जरा एवं मरण से रहित है, उसी की उपासना करनी चाहिये । महात्मा श्री सुन्दरदासजी भी उसकी ही उपासना करते हैं जो देव अविनाशी हैं ॥६॥
(क्रमशः)
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