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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १-जकड़ी राग गौड़ी =*
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(३)
*घट धारी सब एक हैं रे तासौं प्रीति न लाइ ।*
*भेड सरन गहै भेडका तौ कैसैं उबर्या जाइ ॥२॥*
सब शरीरधारी एक समान हैं । उनसे स्नेह करने से हम को क्या मिलेगा ? किसी संकट के समय कोई भेड़ अपने समान किसी अन्य भेड़ का ही साथ पकड़ ले तो क्या उसकी रक्षा हो सकता है ॥२॥
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*प्रांण पिंड जिन सिरजिया रे सो तो बिसरै दूरि ।*
*और और के ह्वै गये तातैं अंत परै मुख धूरि ॥३॥*
जिन ने हमको यह प्राणमय शरीर दिया है उन को तो हमने दूर से ही छोड़ दिया । इसके बदले में हम अन्य अन्य देवताओं के चक्र में पड़ गये कि इससे हम को अन्त में अपमानित ही होना पड़ा ॥३॥
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*लोक कहैं हम करत हैं रे सेवा पूजा ध्यान ।*
*काति सुई सब जन्म लौं वह भयो कपास निदान ॥४॥*
किसी देवी देवता की सेवा - पूजा एवं ध्यान करने वाले पूजक यदि यह कहें कि हम सेवा - पूजा एवं ध्यान कर रहे हैं तो यह बात वैसी ही हुई जैसे कोई रुई कातने वाली जीवन पर्यन्त रुई काते परन्तु फिर भी वह रुई अन्त में रुई ही रह जाय ॥४॥
(क्रमशः)
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