#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*जीवित मृतक का अँग २३*
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*जीवित - मृतक*
दादू मृतक तब ही जानिये, जब गुण इन्द्रिय नाँहिं ।
जब मन आपा मिट गया, तब ब्रह्म समाना माँहिँ ॥२२॥
२२ - २३ में जीवित - मृतक विषयक विचार कर रहे हैं, जब आसुरी गुण और इन्द्रियों के विषयों की आसक्ति न रहे, तब जानना चाहिए - यह जीवित मृतक है । जब सब प्रकार का अहँकार नष्ट होकर मन ब्रह्म - चिन्तन में ही लीन रहता है, तब वह साधक शरीर में रहते हुए भी ब्रह्म के समान ही है ।
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दादू जीवित ही मर जाइये, मर माँहीं मिल जाइ ।
सांई का संग छाड़ कर, कौन सहे दुख आइ ॥२३॥
हे साधको ! जीवितावस्था में ही शव के समान हो जाना चाहिए और इस प्रकार मर कर परब्रह्म में लय हो जाना चाहिए । ऐसा कौन बुद्धिमान् साधक होगा जो परब्रह्म के अभेद रूप संग को छोड़कर, राग - द्वेषादि के चक्कर में आकर क्लेश सहेगा ?
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*उभय असमाव*
दादू आपा कहा दिखाइये, जे कुछ आपा होइ ।
यहु तो जाता देखिये, रहता चीन्हो सोइ ॥२४॥
२४ - २५ में साँसारिक अहँकार और ब्रह्म साक्षात्कार दोनों साथ नहीं रहते, यह कह रहे हैं, अहँकार क्या दिखाते हो ? यदि अहँकार कुछ हो तो भी मिथ्या है । जिन धनादि का अहँकार करते हो, वे सब मिथ्या हैं, वे नष्ट होने वाले हैं, तब उनके साथ ही उनका अहँकार भी नष्ट होता देखा जाता है । अत: अहँकार को छोड़कर जो सदा अचल रहने वाले अविनाशी परब्रह्म है, विचार द्वारा उन्हीं का साक्षात्कार करो ।
(क्रमशः)
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