सोमवार, 18 जून 2018

= १४७ =

卐 सत्यराम सा 卐 
*ताला बेली प्यास बिन, क्यों रस पीया जाइ ।*
*विरहा दर्शन दर्द सौं, हमको देहु खुद आइ ॥* 
*ताला बेली पीड़ सौं, विरहा प्रेम पियास ।*
*दर्शन सेती दीजिये, बिलसै दादू दास ॥* 
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साभार ~ Pardeep Grover

ये *शरीर* ही *खेत* है और इसमें जैसा बीज बोया जाता है वैसा ही फल उपजेगा|
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*बीज - परमात्मा का प्रेम पूर्वक ध्यान सहित जप है* 
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*जल – हरि कथा और हरि कृपा*
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*खेत में गेहूं बोने से गेहूं, आम बोने से आम, और राम बोने से राम ही उपजेगा|*
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हम प्रेम पूर्वक भगवान् के जप और ध्यान का बीज बोवेंगे तो फल रूप से हमें भगवान् ही मिलेंगे| प्रेम में भगवान् से साक्षात्कार इस बीज का फल है| साधारण बीज धूली में पड़ कर नष्ट भी हो जाता है परन्तु निष्काम राम नाम का अमर बीज कभी नष्ट नहीं होता| जल – हरि कथा और हरिकृपा संतों के संग से ही प्राप्त होती है जिससे हरि में विशुद्ध और अनन्य प्रेम होता है| 
अतः *प्रेम की प्राप्ति का उपाय सत्संग ही सबसे बढ़कर है|*
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जितनी अधिक तीव्र उत्कंठा प्रेम में होती है, उतना ही शीघ्र प्रेम में ईश्वर मिलते हैं| *भगवान् जल्दी से जल्दी कैसे मिले? ये भाव जागृत रहने से ही भगवान् जल्दी से जल्दी मिलते हैं|* 
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ये लालसा उत्तरोतर बढती रहनी चाहिए|
पपैया, मेघ को देख कर आतुर होकर विव्हल हो उठता है| ठीक उसी प्रकार हमें प्रभु के लिए पागल हो जाना चाहिए| 
*मछली का जल में, पपैये के मेघ में और चकोर का चंद्रमा में जैसा प्रेम है, वैसा ही हमारा प्रेम प्रभु में होना चाहिए|* 
एक पल भी उसके बिना चैन नहीं मिले| 
*ऐसा प्रेम संतों के कृपा से ही प्राप्त होता है|*
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चन्दन के वृक्ष की गंध को लेकर के वायु समस्त वृक्षों को चन्दनमय बना देता है| बनाने वाली तो गंध ही है परन्तु वायु के बिना उसकी प्राप्ति नहीं हो सकती| इसी प्रकार संतलोग आनंदमय की आनंद की वर्षा कर दूसरों को आनंदमय कर देते हैं| प्रेमी और आनंद के समुद्र को उमड़ा देते हैं|
नारायण नारायण नारायण नारायण
श्री जयदयालजी गोयन्दका

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