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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १-जकड़ी राग गौड़ी =*
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(२)
*अलष निरंजन ध्यावउं और न जाचउं रे ।*
*कोटि मुक्ति देइ कोई तौ ताहि न राचउं रे ॥(टेक)*
मैं तो एकमात्र अलख निरंजन(पर ब्रह्म परमात्मा) का ध्यान करूँगा । अन्य किसी भी वस्तु की मुझ को चाह(इच्छा) नहीं है । भले ही कोई मुझको करोड़ों मुक्तियाँ(मोक्ष) क्यों न दान में दे मैं उनको स्वीकार नहीं करूँगा ।(टेक)
*ब्रह्मा कहियेइ आदि पार नहीं पावै रे ।*
*कीयौ करम कुलाल सुमन नहिं भावै रे ॥१॥*
ब्रह्मा आदि महान् सृष्टि रचियता भी जिसका पार न पा सके । उन ने तो एक कुम्भकार का ही कर्म किया; क्योंकि कुम्भकार भी ऐसे नये नये कर्म करता रहता है । उनको प्राप्त करने की मेरी कोई इच्छा नहीं है ॥१॥
*बिष्णु हुते अधिकारि सुनौ ग्रभ जनम्यौं रे ।*
*संकट मांहें आइ दसौं दिस भरम्यौं रे ॥२॥*
विष्णु को प्राप्त करने की भी मेरी कोई इच्छा नहीं है; क्योंकि वह भी अनेक बार गर्भ में आया और गया । वह भी अनेक बार संकट में पड़ कर उनसे मुक्त होने के लिये इधर उधर दौड़ते रहे ॥२॥
(क्रमशः)
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