रविवार, 24 जून 2018

= शूरातन का अँग(२४ - ७/९) =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*शूरातन का अँग २४* 
जन्म लगैं व्यभिचारणी, नख शिख भरी कलँक ।
पलक एक सन्मुख जली, दादू धोये अँक ॥७॥ 
जो जीव रूप सुन्दरी जन्म - भर भगवान् से विमुख हो, विषयों में लगना रूप व्यभिचार करती रही और नख से शिखा तक दोषों से भरी रही, किन्तु अन्त में भगवद् - भक्ति करके एक पलक भी भगवान् का साक्षात्कार कर लिया, उसकी अविद्या जल गई और जन्म - जन्मान्तरों के सँपूर्ण कर्मों के अँक मैल धुल गये, यह निश्चय समझो । 
स्वांग सती का पहर कर, करे कुटुम्ब का सोच । 
बाहर शूरा देखिये, दादू भीतर पोच ॥८॥ 
जो सती और शूर का भेष पहन कर कुटुम्ब के पोषण की चिन्ता करे तथा सँत का भेष धारण करके इन्द्रिय - पोषण का विचार करे, वे बाहर से ही सती, शूर और सँत दिखाई देते हैं, भीतर हृदय उनका तुच्छ है ।
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दादू सती तो सिरजनहार सौं, जले विरह की झाल । 
ना वह मरे, न जल बुझे, ऐसे संग दयाल ॥९॥ 
वास्तविक सती तो वही है जो परमात्मा की प्राप्ति के लिये विरहाग्नि में जलती है । दयालु परमात्मा के संग के लिये जो विरहाग्नि से सदा जलती रहती है, वह ब्रह्मलीन हो अमर हो जाती है । 
(क्रमशः)

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