#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १-जकड़ी राग गौड़ी =*
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*देह कहै सुनि प्रानियां तेरैं आंषि न कांन वे ।*
*नासा मुख दीसै नहीं हाथ न पांव निसांन वे ॥*
*इक हाथ पांव न सीस नाभी कहा तेरौ देषिये ।*
*भिन्न हमतैं जबहिं बोलै तबहिं भूत विशेषिये ॥*
*डरैं सब कोई शब्द सुनि कै भरम भै करि मांनियां ।*
*सुन्दरदास आभास ऐसौ देह कहै सुनि प्रांनियां ॥५॥*
५. *देह* : अरे प्राण ! न तेरे नेत्र हैं न कान, न नासिका है न मुख । न तेरे हाथ हैं न पैर, न तेरी नाभि ही कहीं दिखायी देती है । तूँ जब हम(देह) से पृथक् हो कर बोलने लगता है तो दर्शक जन, तुझ को भूत प्रेत समझ कर भयभीत होकर दूर भागने लगते हैं; क्योंकि तब तुममें भूत प्रेत का आभास होने लगता है ॥५॥
(क्रमशः)
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