🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= पूरबी भाषा बरवै(ग्रन्थ ३८) =*
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*= आध्यात्मिक बसन्त वर्णन =*
*बहुत जतन कै लावल अद्भुत बाग ।*
*मूल उपरतर डरिया देखहु भाग ॥८॥*
बहुत प्रयास(‘एकोऽहं बहु स्याम्’—यह संकल्प) करके यह अद्भुत बाग(संसार रूपी वृक्षसमूह) लगाया है जिसकी जड़ तो ऊपर(मूल पुरूष में) है, उसकी डाल(शाखारूपी संसार) नीचे है । यही फैला हुआ संसार वृक्ष कर्मफल देता है । (तुलना कीजिये -‘ऊर्ध्वमूल मधःशाखमश्वत्थं प्राहुर-व्ययम्’ - गीता अ०१५-१) ॥८॥
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*सहज फूल फल लागल बारह मास ।*
*भंवर करत गुंजारनि बिबिध बिलास ॥९॥*
इस संसार-वृक्ष में अपने प्रारब्ध कर्म-विपाकरूपी फल-फूल बारहों महीने लगते रहते हैं । भौंरे(संसारी प्राणी अपने प्रारब्धानुसार) उन कर्म-फलों को चारों ओर मँडराते रहते हैं । उन कर्म-फलों को(भोग- पदार्थों को) भोगते रहते हैं ॥९॥
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(यहाँ से ग्रन्थ के अन्त तक उस परमावस्था, परमानन्दप्राप्ति और योग-समाधि के सुख और उसकी बहार के अनुपम दृश्य का वर्णन है जो योगस्थ ध्यानमग्न योगियों को अनुभव होता है --)
(क्रमशः)
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