बुधवार, 6 जून 2018

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#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू सेवक सांई वश किया, सौंप्या सब परिवार ।*
*तब साहिब सेवा करै, सेवक के दरबार ॥* 
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साभार ~ स्वामी सौमित्राचार्य

“प्रपत्ति”~‘नमामि भक्तमाल को’
*श्री त्यौला जी*

ये परम श्रीराम-भक्त थे. ये लोहार जाति में उत्पन्न हुए थे. घोड़ों की टापों में नाल जड़ने में ये अत्यंत प्रवीण थे. ये सदा संत-सेवा में लगे रहते थे. एक बार ये संतों की सेवा में थे तभी बादशाह ने इन्हें नाल जड़ने के लिये बुलाया. ये संतों की सेवा ही करते रहे. दूतों ने चार बार आकर चलने को कहा पर इन्होंने उनकी बात नहीं सुनी. जब बादशाह को पता चला तब वो बहुत क्रोधित हुआ और आदेश दिया कि इनको पकड़कर कोड़े लगाये जाएँ.
उसी समय श्री रघुनाथ जी ने त्यौला जी का रूप धारण किया और बादशाह के पास पहुँच गए. प्रभु ने कहा कि भक्त-भगवत्सेवा में व्यस्त होने के कारण विलम्ब हुआ. प्रभु के वचन सुनते ही बादशाह का क्रोध शान्त हो गया. प्रभु ने घोड़ों के पैरों में नालें जड़ीं और अपने धाम को चले गए. इधर जब त्यौला जी को बादशाह की आज्ञा का ध्यान आया तो वो भी वहाँ पहुँच गए. बादशाह ने इनसे वापस आने का कारण पूछा तो इन्होंने कहा कि ये तो अभी ही आ रहे हैं. यह सुनकर बादशाह को समझ में आ गया कि त्यौला जी के बदले स्वयं भगवान आये थे. इनकी भक्ति का प्रभाव देखकर बादशाह इनके चरणों में गिर गया.
अगर हम भक्ति के मार्ग पर चल रहे हैं तो हमें ‘चिंता’ नहीं करनी चाहिए. हम अपना कर्तव्य-कर्म करते हुए प्रभु का चिंतन करते रहें. हम उसी विषय की चिंता करते हैं जहाँ हम कुछ कर नहीं सकते हैं. अगर हम कुछ कर सकते होते तो चिंता नहीं करते, पहले वो काम कर देते. प्रभु सब कुछ कर सकते हैं और जब हम चिंता करते हैं तो खुद ही उन्हें कुछ करने से रोकते हैं. चिंता करके न हम खुद कुछ कर पाते हैं और न ही प्रभु को करने देते हैं. इसलिए कल्याणकारी बात तो यह है कि निश्चिन्त होकर भजन करें.
“स्वामी सौमित्राचार्य”

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