#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*जीवित मृतक का अँग २३*
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दादू आप छिपाइये, जहां न देखे कोइ ।
पिव को देख दिखाइये, त्यों त्यों आनँद होइ ॥२५॥
अपने साँसारिक अहँकार को जहां रहने पर उसे कोई भी न देख सके, ऐसी उसकी सर्वथा अभाव रूप अवस्था में छिपा दो अर्थात् नष्ट कर दो । फिर परब्रह्म का साक्षात्कार करके ज्यों - ज्यों दूसरे साधकों को साक्षात्कार सँबँधी उपदेश करोगे, त्यों - त्यों ही अधिक आनँद प्राप्त होगा ।
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*आपा निर्दोष*
दादू अंतर गति आपा१ नहीं, मुख सौं मैं तैं होइ ।
दादू दोष न दीजिये, यों मिल खेलैं दोइ ॥२६॥
२६ - २७ में निर्दोष अहँकार का परिचय दे रहे हैं, जिन सँतों के हृदय में "मैं - तू" आदि का अहँकार१ नहीं है, वे भी मुख से "मैं आपका दास हूं, तू मेरा स्वामी है", इत्यादिक भगवान् से विनय करते हैं, उनको "मैं - तू" आदि अहँकार का दोष न देना चाहिए । वे तो परब्रह्म में मिलकर ही इस प्रकार के प्रतीति मात्र द्वैत रूप अहँकार द्वारा भक्ति का आनँद लेते हैं ।
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जे जन आपा मेट कर, रहे राम ल्यौ लाइ ।
दादू सब ही देखताँ, साहिब सौं मिल जाइ ॥२७॥
जो साधक अपने साँसारिक अहँकार को नष्ट करके प्रतीति मात्र सेवक - स्वामी रूप अहँकार से निरँतर अपनी वृत्ति निरंजन राम में लगाते हैं, वे अनासक्ति भाव से सबको देखते हुये वो सबके देखते - देखते ही परब्रह्म को प्राप्त हो जाते हैं ।
(क्रमशः)
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