शनिवार, 23 जून 2018

= शूरातन का अँग(२४ - ४/६) =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*शूरातन का अँग २४* 
जब दादू मरबा गहै, तब लोगों की क्या लाज ? 
सती राम साचा कहै, सब तज पति सौं काज ॥४॥ 
जब मरणा स्वीकार कर लिया जाय, तब सँसारी लोगों से लज्जा करने की क्या आवश्यकता है ? फिर तो जैसे सती का सब कुछ त्याग कर अपने पति से ही काम रहता है, वैसे ही सच्चे साधक का भी सब कुछ त्यागकर राम २ कहने से ही काम रहता है ।
दादू हम कायर कड़बा१ कर रहे, शूर निराला होइ । 
निकस खड़ा मैदान में, ता सम और न कोइ ॥५॥ 
कायर - शूर का परिचय दे रहे हैं, युद्ध के समय कायर लोग तो उत्तेजना के गीत गाते हुये युद्ध - प्रयाण१ की तैयारी ही करते रहते हैं किन्तु वीर उन कायरों से भिन्न ही होता है । वह तो कायरों के यूथ से निकलकर युद्ध के मैदान में झट खड़ा हो जाता है, उसके समान वे कायर नहीं हो सकते । वैसे ही जीवित - मृतक होने की बातें करने वाले ही बहुत हैं, होने वाला उनसे भिन्न ही होता है । उसके समान बातें करने वाले नहीं हो सकते । 
शूर सती साधु निर्णय 
मड़ा१ न जीवे तो संग जले, जीवे तो घर आण । 
जीवन मरणा राम सौं, सोइ सती कर जाण ॥६॥ 
६ - १२ में सच्चे शूर, सती और सँत का परिचय दे रहे हैं, यदि मरणासन्न१ पति जीवित नहीं रहे तो उसके साथ जल जाती है और जीवित हो जाय तो घर ले आती है, उसे ही सती समझना चाहिये । वैसे ही जिसका जीवन - मरण राम के लिये ही है, वही सँत शूर है । 
(क्रमशः)

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