#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १-जकड़ी राग गौड़ी =*
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*जीव कहै काया सुनौ तूं काहू नहिं काम वे ।*
*सोभ दई हम आइकैं चेतनि कीया चांम वे ॥*
*इक चाम चेतनि आइ कीया दिया जैसैं भौन वे ।*
*बोलन चालन तबहिं लागी नहिंतु होती मौंन वे ॥*
*यह मौंन तेरौ जबहिं छूटै तबहि तुम नीको बनौ ।*
*सुन्दरदास प्रकास हमतैं जीव कहै काया सुनौ ॥४॥*
*प्राण* : ४. तुम्हारा अकेले कोई उपयोग नहीं किया जा सकता । तुम्हारे साथ हमारा संयोग होने पर ही तुम्हारा उपयोग किया जा सकता है । अन्यथा अकेला चर्म समूह किसी के क्या उपयोग में आ सकता है ! इस चर्म समूह के साथ चेतन के मिलने पर ही यह मृत शरीर एक सुन्दर भवन के समान शोभायमान प्रतीत होने लगता है । इस चर्म समूह(शरीर) में बोलने चलने की चेष्टाएँ रहने तक ही यह दर्शनीय एवं स्पर्शनीय है । अन्यथा इसकी ये क्रियाएँ विनष्ट होते ही यह मृत(संज्ञाशून्यमूक) हो जाता है । अतः यह स्पष्ट है कि इस देह का समग्र सौन्दर्य तभी तक स्थिर रहता है, जब तक कि मुझ चेतन की सत्ता इसमें रहती है ॥४॥
(क्रमशः)
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