गुरुवार, 14 जून 2018

= सुन्दर पदावली(१-जकड़ी राग गौड़ी १/४) =

#daduji

॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय (चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*= १-जकड़ी राग गौड़ी =*
*जीव कहै काया सुनौ तूं काहू नहिं काम वे ।* 
*सोभ दई हम आइकैं चेतनि कीया चांम वे ॥* 
*इक चाम चेतनि आइ कीया दिया जैसैं भौन वे ।* 
*बोलन चालन तबहिं लागी नहिंतु होती मौंन वे ॥* 
*यह मौंन तेरौ जबहिं छूटै तबहि तुम नीको बनौ ।* 
*सुन्दरदास प्रकास हमतैं जीव कहै काया सुनौ ॥४॥* 
*प्राण* : ४. तुम्हारा अकेले कोई उपयोग नहीं किया जा सकता । तुम्हारे साथ हमारा संयोग होने पर ही तुम्हारा उपयोग किया जा सकता है । अन्यथा अकेला चर्म समूह किसी के क्या उपयोग में आ सकता है ! इस चर्म समूह के साथ चेतन के मिलने पर ही यह मृत शरीर एक सुन्दर भवन के समान शोभायमान प्रतीत होने लगता है । इस चर्म समूह(शरीर) में बोलने चलने की चेष्टाएँ रहने तक ही यह दर्शनीय एवं स्पर्शनीय है । अन्यथा इसकी ये क्रियाएँ विनष्ट होते ही यह मृत(संज्ञाशून्यमूक) हो जाता है । अतः यह स्पष्ट है कि इस देह का समग्र सौन्दर्य तभी तक स्थिर रहता है, जब तक कि मुझ चेतन की सत्ता इसमें रहती है ॥४॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें